आयौंका मूल स्थान और घेदोंकी प्राचीनता ४११ निकलफर राजपूतानाके समुद्र में गिरती थी। ऋग्वेदमें न तो दक्षिणका और न पूर्वी भारतका ही कुछ उल्लेख मिलता है। इसका कारण यह है कि पञ्जाव और इन प्रदेशोंके बीच बड़े बड़े सागर स्थित थे। (५) श्रीयुत दासको सम्मतिमें सप्त सिन्धु प्राचीन आय्योका मूल निवास है। यहीसे ईरानी आर्य परस्परके झगड़ोंके कारण ईरान में जाकर बस गये। यहींसे मार्यो की भिन्न भिन्न शाखायें भिन्न भिन्न कालोंमें पश्चिमी एशिया और मिश्रमें जाकर रहने लगीं। इसी प्रकार दास महाशयके मतानुसार प्राचीन फोनीशि- यन लोग आर्यो के उसी दल मेंसे थे जिसको चैदिक साहित्यमें पणि नामसे पुकारा है । पणि लोग पहले पहले दक्षिणको गये। । वहां उन्होंने चोल और पाण्ड्य जातियोंके लोगोंसे सम्बन्ध उत्पन्न करके उनको आर्य-सभ्यताका अनुयायी बनाया। इन चोल लोगोंने चेल्डियाको बसाया और बेबीलोनिया राज्यकी नींव डाली। (६) दास महाशयको सम्मतिमै पक्षायी आयोंके भिन्न भिन्न दल स्वदेश छोड़कर पश्चिमी एशियामें जा बसे और यहां जाकर तूरानी घंशके साथ मिल गये। यह सम्भव है कि मिथित चंशके दल यूरोपके कुछ भागों में भी पहुंच गये। उनकी सम्मतिमें मामी निया, केपीडोशिया, लिडिया, फर्गिया, योएटस और इसके इर्द गिर्दके प्रान्तोंकी यस्तियां सव पक्षाची भाथ्यों के घंशसे हैं। इनकी कुछ शाखाओंने किसी पीछेके समयमें जाकर एशिया- कोवकके दूसरे भागोंको बसाया। इस प्रकार कोसीन, हिटा. इट्स ( Hittites) और भीटेनियन्स ( Mittamians ) ये सय आर्य-चंशसे समझ जाते हैं। यह कहना कठिन है कि श्रीयुत दासके ये विचार कहांतक
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