४०८ भारतवर्षका इतिहास 1 पहला-आर्योंका मूलनिवास मध्य एशिया था। यह सबसे प्राचीन विचार है और अभीतक यहुमत इसीके पक्षमें है। दूसरा-आयोफा आदि निवास उत्तरी ध्रपके समीप था! इस विचारके माननेवालोंमें हमारे प्रसिद्ध देशभक स्वर्गीय लोक: मान्य बाल गङ्गाधर तिलक थे। कुछ यूरोपीय विद्वान भी इस विचारका समर्थन करते हैं। तीसरा-कुछ लोग मार्यो का मूल निवास स्कएडीनेविया अर्थात् यूरोपफे उस भागको यताते हैं जो इस समय स्वीडन और नार्वेके नामसे प्रसिद्ध है। चौथा-कुछ समयसे अन्वेपकोंका एक नवीन समाज उत्पन्न हुआ है। उसकी यह प्रतिज्ञा है कि आर्योका मूल निवास दक्षिण-पूर्वी यूरोप था जो भूमध्य सागरके तटपर स्थिर है और एशियामें जो आर्य्य यसते हैं वे यहांसे ही गये । पांचवां-अन्तिम वह समाज है जो एशिया-कोचकको आय्याँका मूल देश बताता है और कहता है कि यहांसे भिन्न भिन्न आर्य-दल पश्चिम, पूर्व, उत्तर और दक्षिणमें फैल गये। चौथा और पांचवां समाज यहुत अंशोंमें एक दूसरेके निकट है। इसी प्रकार दूसरा और तीसरा दल एक दूसरेसे समीप है । अतएव वास्तव में इस प्रश्नपर तीन प्रकारके विचार रह जाते हैं। परन्तु एक और चौथा विचार भी है जिसका समर्थन समस्त हिन्दू- ऐतिह्य और हिन्दू-साहित्य करता है। वह यह कि आर्योंका मूल निवास उत्तर भारत था। वहींसे यह जाति, उसकी सभ्यता और उसकी भापा एशिया, यूरोप और अफीकाके भिन्न भिन्न भागोंमें फैली। इस अन्तिम विचारकी पुष्टिमें जो प्रमाण मौजूद हैं. उनको हालमें कलकत्ता विश्वद्यिालयमें प्राचीन भारतीय इतिहासके
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