४०६ भारतवर्षका इतिहास अधिक प्रतिष्ठित और मान्य समझते हैं। सच तो यह है कि इस समय संसारमें विशुद्ध चंश कोई नहीं है। सारे मनुष्य-वंश आपसमें खिचड़ी हो गये हैं। फिसी जातिके विषयमें यह कहना कि यह किसी विशुद्ध वंशमसे है कुछ अधिक महत्व नहीं रखता । कदाचित् संसारकी शान्तिके लिये यह अच्छा हो कि यह विवाद सर्वथा बन्द हो जाय। परन्तु जबतक संसारमें जातीय गर्व शेष है तबतक लोगोंको इस प्रश्नमें रुचि रहेगी। यह यात मानी हुई है कि भारतमें प्रचुर संख्या आय्यं-जातिके लोगोंकी है। कमसे कम यह यात निश्चित है कि उसमें आर्य: 'जातिका रक्त संसारकी शेप सभी आर्य-जातियोंसे अधिक है। ईरानियों में लगभग सभी जातियोंका रक्त मिला हुआ है । यूरो- पीय जातियोंके विषयमें अब यह सन्देह करने के लिये पर्याप्त कारण हो गये हैं कि वे बिलकुल आर्य-जाति,से नहीं है या उनमें आर्य-जातिका रुधिर घहुत थोड़ा है। जातियों के सम्य- न्ध कतिपय भादर्श हैं जिनकी कसौटीपर अन्वेपक लोग मिन्न भिन्न जातियोंको परखते हैं। उदाहरणार्थ, यह विचार कि हिन्दू, ईरानी और यूरोपीय जातियां एक ही वंशसे हैं, सन् ११७८६ ई. में सर विलियम जोजने इस आधारपर प्रकट किया था कि इन जातियोंकी भाषाओं में बहुत कुछ सादृश्य है और ये भाषायें अपनी यनावट और अपनी रीति-नीतिमें इस प्रकारको है कि उनके सम्बन्धमें उचितरूपसे यह परिणाम निकाला जा सकता है कि उनके पूर्वज किसी समय एक ही वंशसे सम्बन्ध रखते थे और एक ही प्रदेशमें बसते थे। इसी आधारपर यह सम्मति स्थिर की गई थी कि आर्य-जातिका मूल निवास "मध्य एशिया था। वहींसे यह जाति उत्तर, दक्षिण, पश्चिम, और । पूर्व में फैली। परन्तु गत १५० वर्षों में मनुष्य के प्राचीन इतिहासके
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४४९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।