हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति ४१ है। फर्गुसन महाशयं लिखते हैं कि नौ सौ वर्पतक जावा और सुमात्रामें हिन्दू ऐसी इमारतें यनाते रहे जिनके नमूनेकी और इमारतें दूसरी जगह नहीं मिलती। व्यापार और शिल्पका विभाग। प्राचीन भारतमें सामयिक सरकारका यह भी कर्तव्य था कि यह कृषि, शिल्प और उद्योग-धन्धेकी उन्नति के लिये उचित प्रवन्ध करे, और व्यापारकी उन्नतिकी दृष्टि से प्रत्येक प्रकारको आवश्यक जानकारी अपनी प्रजाको देती रहे। कृषि-विभागका यह काम था कि वह कृषि कृषि-विभाग। की उन्नति के लिये उचित उपायोंसे काम ले, और भिन्न भिन्न प्रकारके उत्तमोचम वीज इकट्ठ करके कृषकोंमें वाटे। इसी विभागका यह काम था कि वर्ग और वायुके सम्बन्धमें भिन्न भिन्न समाचार इकट्ठ करके लोगोंको दिया करे। आजकल यह विभागमीटियोरोलोजी कहलाता है। चाणक्य- के अर्थशास्त्रों इसके विपयमें उपदेश लिपे गये हैं। भूमिके जिन टुकड़ोंमें खेती न हुई हो उनमें पत्ती कराने का प्रयन्ध करना और आवश्यकताके समय किसानोंको तमाची देना भी इसी विभागका काम था। इसी विभागके सिपुर्द दूध और मक्खन आदि उपस्थित करनेका प्रबन्ध था । दूध देनेवाले पशुओं और दूसरे जंतुओं की रक्षा और वंश वृद्धि भी इसी विभागका कर्तव्य. कर्म ठहराया गया था। पहले लिन आये है कि धनों, पनिजों और खानों विभाग हिन्दू राज्योंके आवश्यक अंग समझे जाते थे। यह माना जाता है कि धातुओंको काममें लानेके सम्बन्ध में हिन्दुओंने उच्च कोटिको योग्यता प्राप्त की थी। जो लोहेकी ला भारतमें ढाली जाती थी ये संसारकी अद्भुत वस्तुयें समझी गई हैं।
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