४०० भारतवर्षका इतिहास चाहिये। उनमेंसे तीन उत्तर-दक्षिणकी ओर और तीन पूर्व पश्चिमकी ओर हों । इनके अतिरिक्त और अन्य सड़कें भिन्न भिन्न आवश्यकताओंके लिये बनाई जायें। बड़ी सड़कें राजमार्ग कहलाती थीं और दूसरी सड़कोंको मार्ग, वीथि या पाद्य कहते थे। बड़ी घड़ी सड़कोंपर अन्तर दिखानेके लिये और छोटो सड़योंका निशान देनेके लिये स्तम्भ बनाये जाते थे। सड़कों के दोनों ओर वृक्ष लगाये जाते थे। उचित स्थानोंपर पथिकोंके. विधामके लिये धर्मशालायें बनाई जाती थीं, नालोंपर ईट-चूने या लकड़ीके और बड़ी बड़ी नदियोंपर नावोंके पुल बनाये जाते थे। वेदोंमें और महाभारतमें सिंचाई के लाधनोंका बहुत उल्लप मिलता है । पुराने राजा उचित अन्तरोंपर नहरें, तालाय और झीलें प्रचुर संख्यामें यनाते और युवें और झरने लगवाते थे। नये तालाव और कुवें बनानेवालेको कई वर्षांतक राजसमें रियायत दी जाती थी। मौर्यवंशके राजाओंके समयमें सिंचाईका एक विशेष विभाग था। राजतरङ्गिणीमें भी नहरों आदिका उल्लेख है। यह यात द्रष्टव्य है कि हिन्दुओंने अपने मकान बनानेकी रुचिको भारततक ही परिमित नहीं रखा, परन् जहां जहां वे जाकर वसे वहीं उन्होंने भारतीय नमूनेकी महत्तायुक्त इमारते यनावाई। वे अबतक लङ्का, कम्बोदिया, जावा, वाली और सुमात्रा आदि द्वीपों और श्याम देशमें मिलती है । सिंहल द्वीपमें राजा पराक्रम वाहुने न केवल असंख्य मन्दिर, विहार, सार्वजनिक भवन, बाटिकायें और उद्यान ही बनाये घरन् सहस्रों झीलें, तालाव और नहरें भो खुदवाई। एक झीलका नाम उसने पराक्रम समुद्र रखा। उसकी प्रसिद्ध नहरका नाम जय गड्डा
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