३६८ भारतवर्षका इतिहास डाफर फर्गसन महाशय कहते हैं कि यह लाट प्रकट करती हैं कि ईसाकी पांचवीं शताब्दीमें हिन्दू लोग लोहेकी इतनी बड़ो लाट ढाल सकते थे जिसके वरायर वर्तमान कालसे पहले यूरोपमें कभी नहीं बनाई गई थी, और जिस आयतनको लोहेकी सलाखें अब भी यूरोपमें बहुत नहीं बनाई जातीं। यह भी, आश्चर्य की बात है कि चौदह सौ शताब्दीतक आंधी और वर्षाके आघात सहते हुए भी अभीतक इस लाटपर मोर्चा नहीं लगा।। दूसरे प्रकारकी इमारतोंमेंसे भेललाके टोप सामान्यतः और साँचीके टोप विशेषतः बहुत प्रसिद्ध हैं। सांचीका टोप पेंदेसे पुछ ऊपर व्यासमें १०६ फुट है। इसके ऊपर ४२ फुट ऊंचाईका एक मीनार है। तीसरे प्रकारको इमारतोंमेंसे दो बहुत प्रसिद्ध हैं, अर्थात् एक सांची का कटहरा (रेल) और दूसरा अमरा- चतीका कटहरा। ये अतीव उच्च कोटिको कारीगरीके हैं। इन दोनोंपर विचित्र प्रकारका तक्षण है। महात्मा युद्धके जीवनकी भिन्न भिन्न घटनाओं के चित्र खोदे गये हैं और स्थान स्थानपर भिन्न भिन्न जन्तुओंके चित्र अतीव कौशल के साथ दिये गये हैं। चौथे प्रकारकी इमारतें संसारमें अपने प्रकारकी निराली हैं। ये बनाई हुई नहीं, पहाड़ों में खोदी हुई हैं। इनमेंसे कारलीका चैत्य अतीव अद्भुत और विख्यात है। यह चैत्य ईसाफे जन्मके एक सौ वर्ष पहले बना था। इस प्रकारकी इमारतोंमेंसे तीस इमारतें अबतक मौजूद हैं। परन्तु इन सबमेंसे प्रसिद्ध और रचनाकी दृष्टिसे अतीय विचित्र पश्चिमी भारतको चे,गुफायें हैं जो पहाड़ोंमेंसे काटकर बनाई गई है। ये चारह सौकी संख्या में अबतक मिलती हैं। इनमेसे कारली, अजन्ता; और एलोरा इस कलाके सर्वोत्तम नमूने हैं। वम्बईके निकट समुद्र के बीच एक पहाड़को काटकर बनाई हुई
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