हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति ३६५ न्यूयार्क ऐसे बड़े बड़े नगरोंका अस्तित्व सामान्यतः मनुष्य- मात्रके लिये लाभदायक है कि नहीं। प्राचीन भारतमें नगर बहुत थे । यूनानी लेखक लिखते हैं कि सिकन्दरने लगभग दो सहस्र नगर पञ्जावमें ही विजय किये। हिन्दू शास्त्रोंमें नगरों और ग्रामोंकी रचनाके सम्बन्धमें , बहुत विस्तारके साथ उपदेश दिये गये हैं। इससे मालूम होता है कि प्राचीन भारतीय नकशेके अनुसार नगर और गांव बसानेको बहुत मानते थे। मकानोंमें प्रकाश और चायुकी पर्याप्त गुजा- यश रखते थे। यूनानी-लेखक भारियन भारतीय नगरोंके विषयमें लिखता है कि इस देशमें नगरोंकी इतनी प्रचुरता है कि उनकी संख्याका अनुमान करना भी कठिन है। मगधकी राजधानी पाटलिपुत्रके विषयमें वर्णित है कि उसकी लम्बाई दस मील और चौड़ाई दो मील थी। उसके गिर्दा गिद् एक खाई थी जो छ: सौ 'फुट चौड़ी और तीस फुट गहरी थी। नगरकी प्राचीरपर पांच सौ सत्तर बुर्ज और चौसठ दरवाजे थे । इसी प्रकार फाहियानने पाटलिपुत्रकी प्रशंसामें बहुत कुछ लिखा है। यह नगर उस समय ऊजड़ हो चुका था परन्तु इसके खंडहर मौजूद थे। वैशालीके विषयमें भी चीनियों की पुस्तकों में यह लिखा है कि यह नगर बहुत विभवशाली और अतीव जनाकीर्ण था। इसमें 89०७ ऐसी इमारतें थीं जो दो या दोसे अधिक मंजिलोंकी थीं। 89०७ ऐसे मकान थे जिनपर शिखर लगे हुए थे; 4900 ऐसे चौक थे जो केवल जनताके मनोरखनके लिये बनाये गये थे और ७७०७ ऐसे सरोवर थे जिनमें कमल फूलते थे !* संस्कृतके प्रसिद्ध कवि वाणने उज्जैन नगरकी बहुत प्रशंसा की है और चीनी पर्यटक हा नसाट्ने कन्नौज नगरके गुण गाये
- पधिक है कि पांक पनुमानौ मिस कर दिये।