पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४३५

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हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति मात्र हो, या जो केवल द्वारपाल हो या किसी अन्य प्रकारसे सेवा करनेवाला हो।" मनुने भी आगे लिखे नियम इस सम्बन्धमें दिये हैं :- "किसी व्यक्तिको गुप्त शस्त्रोंसे न मारता चाहिये, और न विपैले शस्त्रोंसे, न काँटेदार शस्त्रोंसे, और न ऐसे शस्त्रोसे जिनके सिरोपर आग लगाई हो।" शेष उपदेश लगभग ऐसे ही हैं जैसे कि ऊपर लिखे जा चुके हैं। इन शास्त्रों में यह भी कहा है कि “किसी ऐसे व्यक्तिपर जो नपुंसक हो, जो वृद्ध हो, या जो लड़नेवाला न हो, आघात पारना अधर्म है। फ़सलोंको नष्ट करने अथवा शत्रुके देशमें लूट मचानेका घोर निषेध था।" यूनानी दूत मगस्थनीज़ इस विषयमें यों लिखता है :- "जैसे दूसरी जातियोंमें यह प्रथा है कि लड़ाई के दिनोंमें भूमि- को नष्ट करके ऊजड़ जङ्गलके समान बना दिया जाता है, वैसा भारतीयों में नहीं। वरन् इसके विपरीत भारतीय कृषक समाजको पविन समझते हैं और उनके साथ विरोध करना पाप समझते है। युद्ध-कालमें भी आस-पासके किसान निश्चिन्त होकर अपने शपि-कर्ममें निरत रहते हैं। दोनों दलोंके सिपाही उनके साथ हस्तक्षेप नहीं करते। न तो शत्रुको भूमिमें आग लगाते हैं और न वृक्ष ही काटते हैं। हिन्दुःशास्त्र इस विषयमें भी सहमत हैं कि किसी शत्रुको परास्त करके उसके देशको तहस-नहस नहीं करना चाहिये। केवल यहां राज्ञाकी अधीनताको ही यथेष्ट समसकर उसीको स्थानीय शासन सौंप देना चाहिये। यूनानी दूत मगस्थनीजने भारतीयोंके डील-डौल, उनके शौर्य और वीरता था उनकी युद्ध-कलाको यहुत प्रशंसा की है । परन्तु >