भारतवर्षका इतिहास हम उन उपदेशोंको करण उपस्थित करनेके सम्बन्धमें भो प्रत्येक वात नियमबद्ध थी। चन्द्रगुप्तके समयमें छः भिन्न भिन्न विभाग सैनिक प्रबन्धक लिये थे। इनमेंसे एक सामुद्रिक विभाग भी था। इन शास्त्रोंमें लड़ाइयां लड़नेके सम्बन्धमें भी सविस्तर उप. देश लिखे हैं और उन शास्त्रोंका ब्योरा भी दिया गया है जिनका युद्धमें उपयोग होना चाहिये। इन उपदेशोंमें झण्डी देने (सिगनलिङ्ग). दुर्गाको बनाने और उनकी रक्षा करनेका भी वर्णन है। यहां नहीं लिप्यते । हमारी सम्मतिमें इन कानूनोंका सबसे आय: श्यक और महत्वपूर्ण अङ्ग यह है जिसमें युद्धके नैतिक अङ्गपर दृष्टि डाली गई है । उदाहरणार्थ,महाभारतमें लिखा है कि किसी राज्यको अधर्म या पापसे दूसरे देशोंको जीतनेका यत्न नहीं करना चाहिये, चाहे ऐसा करनेसे उसे चक्रवर्ती राज्य ही क्यों ग मिलता हो। इसका तात्पर्य यह है कि हिन्दू-धर्म किसी राजाको लालचसे या चक्रवर्ती राजा होनेकी लालचसे दूसरी जातियों और दूसरे देशोंपर चढ़ाई करनेकी आज्ञा न देता था। महाभारतमें आगे लिखे नियम भी दिये गये हैं। "यदि किसी योद्धाका कवच गिर जावे अथवा कोई शरण मांगे, अथवा अपना शस्त्र छोड़ दे तो उसकी हत्या करना उचित धर्म नहीं। न किसी ऐसे व्यक्तिकी हत्या करना धर्म है जो सोया हुआ हो, या जिसका उपकरण गिर गया हो, या जो मुक्तिकी इच्छा रखता हो (अर्थात् साधु हो), या जो भाग रहा हो, या जो खान-पानमें लगा हुआ हो, या पागल हो, या जो घोररूपसे आहत हो रहा हो, या जो भरोसा करके ठहर गया हो, या जो किसी कलाका विशेषज्ञ हो, या जो दुःखमें हो, या जो घास चाराके लिये शिविरसे बाहर आया हो, याबो खलासी
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