पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४३०

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३८८ भारतवर्पका इतिहास

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है, क्योंकि उनको एक दूसरेपर पूर्ण विश्वास है । ये लोग अपने घरों और अपनी सम्पत्तिको प्रायः अरक्षित छोड़ जाते हैं। मगस्थनीज़के भारत-प्रवास के लगभग एक सहस्र धर्प पीछे चीनी पर्यटक घ नसाङ्ग इस देशमें आया। उसकी साक्षी मागे दी आती है:- "इस देशके सर्वसाधारण यद्यपि हँसमुख हैं परन्तु अतीव सत्यवादी और सत्यकम्मी है। रुयये पैसेके मामलोंमें वे एक दूसरेके साथ धोखा नहीं करते । न्याय करनेमें वे बहुत साव- धान हैं। वे दूसरे जामसे डरते हैं और इस संसारके नश्वर पदार्थोकी कुछ परवाह नहीं करते। वे अपने कर्मसे कपटी और विश्वासघातक नहीं। वे अपने शपथों और पवनों के पके हैं। उनकी शासन-पद्धतिमें विचित्र प्रकारकी सादगी और सफ़ाई है। उनके वर्तावमे अत्यन्त सजनता और माधुर्य है।" मुसलमान पर्यटकों और ऐतिहासिकोंने भी इस घातका समर्थन किया है और स्थल स्थलपर हिन्दुओंकी सत्यवादिता और निष्कपटताको प्रशंसा की है। इस पुस्तकके दुसरे भागमें हम उन उद्धरणोंकी नकल करेंगे। साधारण राजस्व । अर्थ-शास्त्रमें साधारण राजस्वके विषयमें विस्तारपूर्वक उपदेश दिये गये हैं। गौतम-स्मृतिमें यह लिखा है कि किसानों से उपजका .१ या .१२५ या.१६ लेना चाहिये । सोनेपर.०२, व्यापारके मालपर .०५ और फल-फूल, औपधियों, मधु, मांस, घास और लकड़ीपर .०१६ लेना चाहिये। विष्णु-स्मृतिमें आयात पदार्थोपर पांच प्रतिशत और स्थानीय बनाये हुए कपड़े कर है। पर दस त