पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४२८

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भारतवर्षका इतिहास 1 ऐसा प्रतीत होता है कि शास्त्रकारका अभिप्राय यह था कि 'इस प्रथाको बन्द कर दिया जाय। अन्यथा वह अपवादोंकी इतनी लम्बी सूचीका वर्णन न करता। इसी प्रकार अभियोगोंको सुननेके सम्बन्धमें और इनके अतिरिक्त साक्षियोंके सम्बन्धमें अर्थात् साक्षी किस प्रकारके होने चाहिये, किस प्रकारके आवेदन ( वयान ) लिये जावें और किस प्रकार उनको शपथ दी जावे, शास्त्रोंमें सविस्तर उपदेश लिखे हुए हैं। लिखित साक्षीका वर्णन करते हुए शास्त्रकार तीन प्रकारके निदर्शन-पत्रोंका उल्लेख करता है :- (१) वे जिनपर राज-कर्मचारियोंकी सही हो जैसी कि याजकल रजिस्टरी-विभागमें होती है। (२) वे जिनपर प्राइवेट (निजी) साक्षियोंकी सही हो । (३) वे जिनपर किप्तीकी सही न हो। मिथ्या साक्षी देनेवालेके लिये घोर दण्ड नियत थे। इस लिये प्रतीत होता है कि अदालतोंमें झूठी गवाही यहुत कम गुजरती थी। मगस्थनीज़ने यह सही की है कि उसके अनुभव, यहांके अधिवासी प्रायः झूठ न बोलते थे। नारद-स्मृतिमें यह थाशा है कि निर्णय हो जानेपर एक प्रति जीतनेवाले पक्षको दी जाय । शुक्रनीति और नारद-स्मृति दोनोंसे मालूम होता है कि अभियोगोंमें मुसतारों और कानून-पेशा लोगोंको वियाद करने . की भाज्ञा थी। चीनी पर्यटक फाहियान, सुङ्गयुन और हा नसाग जो ईसाके संवत्को पहली शताब्दियोंमें मिन्न भिन्न समयोंमें आये, तीनों इस बातफो प्रमाणित करते हैं कि घोरसे घोर फौजदारी अभि-