३६८ भारतवर्षका इतिहास लोगोंका काम था। राजाका फाम फेवल यह था कि वह धर्म- शास्यके.नियमोंके अनुसार प्रबन्ध कायम रपखे, और देशको रक्षा करे । महाभारतमें, ब्राह्मणोंमें, और नीति-शास्त्रोंमें अतीय विस्तारके साथ ये नियम वर्णित हैं जिनके अनुसार राजाओंको चलना चाहिये। उनके कर्तव्योंका भी सविस्तर वर्णन है। ऊपर लिखे व्योरोंसे ये परिणाम निकलते हैं:- (१) वैदिककालमें प्रजा राजाको चुनती थी। यह चुनाव कभी कमी या फुछ अवस्थाओंमें किसी नियत अवधिके पश्चात् होता था। किसी राजाके वंशमें राज्य परस्परीण होते हुए भी प्रत्येक राजाके तिलकोत्सवपर प्रजाकी स्वीकृति आवश्यक समझी जाती थी। देशके कुछ भागोंमें चिरकालतफ यह प्रथा रही कि प्रजा प्रतिवर्ष एक या दो व्यक्तियोंको राजा निर्वाचित करती थी। कुछ स्थानों में दो राजा इसलिये चुने जाते थे कि 'एक सेनाधिकारी बनकर बाह्यरक्षाका जिम्मेदार हो और दूसरा भीतरी प्रयन्ध करे। देशके कुछ भागोंमें बहुतसे मनुष्योंको निर्वाचित करके सबको राजा कहा जाता था। (२) राजा प्रजाका सेवक और रक्षक समझा जाता था। जो राजा अपने कर्तव्योंकी उपेक्षा करता था उसको राज्यसे यश्चित कर दिया जाता था और उसके स्थानमें नवीन राजा निर्वाचित किया जाता था। (३) राजापर कानूनका पालन ऐसा ही अनिवार्य था जैसा कि दूसरे लोगोंपर। (४) सामान्यतः राजा कानून नहीं बनाता था। हाँ, राज्य- के प्रयन्धके लिये आशायें जारी करता था। उनका पालन प्रजा का कर्तव्य था। (५) राजासे हिन्द-शास्त्रों का तात्पर्य प्रत्येक ऐसी शकिसे .
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