हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति '३६३ व्यक्तिका नाम उन लोगोंने महा सामन्त रक्खा। उसको धे क्षत्रिय कहने लगे। महा सामन्तका अर्थ यह है कि इसको सबने स्वीकार किया है। वह क्षत्रिय इसलिये कहलाया कि वह उनके खेतोंकी रक्षा करता था। क्योंकि वह धर्म के अनुसार सबको चलाता था और आप भी धर्मात्मा था, इसलिये उसको राजा • कहा गया । इस कथासे भी स्पष्ट विदित होता है कि राज्यका आरम्भ और पहले राजाओंकी नियुक्ति जनताकी स्वीकृतिसे हुई । राजा उसी समयतक राजा समझा जाता था जबतक कि वह धर्म के अनुसार अपने कर्तव्योंको पूरा करे। अधर्मका आच- रण या कर्तव्यकी उपेक्षा करने, या पाप, व्यभिचार या दुरा- चारकी अवस्था में लोगोंका धर्म न था कि वे राजाको आज्ञाओं- का पालन करें। वरन् उनको यह भी अधिकार था कि उसको सायी या अस्थायीरूपसे सिंहासनच्युत करके उसके स्थानमें नवीन राजा नियुक्त कर दें। चौद्धायन-सूत्रोंमें स्पष्टरूपसे वर्णित है फि राजा जातिका सेवक है । उसका कर्तव्य है कि प्रजाकी रक्षा करे और बदलेमें उपजका १६ भाग वेतन के रूपमें प्राप्त करे। चाणक्य + कहता है कि चूंकि प्रजा राजाओंको चेतन देती है, इसलिये उनका कर्तव्य है कि वे राज्यका निरीक्षण करें। शुक्र-नीतिमें भी यही विचार प्रकट किया गया है कि ब्रह्माने राजाको अपनी प्रजाका सेवक बनाया है और उपजका एक अंश उसका वेतन नियत किया है। वह राजा केवल इसी कारण है कि अपनी प्रजायी रक्षा करे। महाभारत और मनुस्मृति आदि
1 वोडायन सब प्रथम भाग अध्याय दम शौक पहन । + अर्थशास्त्र हितीय पध्याय । न रिदादमि हमको उन विचारों के बीज दिखाई देते हैं जिनको फाम मो विदवान् रोसोके नाम से पुकारा जाता है।