पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३८५

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हिन्द और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना ३४३ और परीक्षणोंने मनुष्य को अपने शील और अपनी आध्यात्मि- कतामें उन्नति करनेके स्थानमें यहुत कुछ गिरा दिया है। आधुनिक सभ्यता माधुनिक सभ्यताका यह चित्र है परस्पर विरोधी बड़। कि एक ओर तो विपाक धुआं, विषाक्त पंच, दूर दूरनक मार करनेवाली तो, हवाई जहाज, जलमग्न नावें, युद्धके बड़े बड़े जहाज मनुप्यमात्र के विनाशके लिये उपयोगमें लाये जाते हैं और शत्रुकी जातिको स्त्रियों, बच्चों और बूढ़ों समेत, निर्दयता-पूर्वक नष्ट किया जाता है, दूसरी ओर उनकी महम-पट्टीके लिये और उनकी चिकित्सा- के लिये डार और धायें रक्सो जाती हैं। पहले जान बूझकर लोगों को बड़ी क्रूरनासे घायल किया जाता है और फिर उनके घावोंको चङ्गा करनेके लिये सर्जन और रेडमासकी दाइयां रफपी जाती हैं । यूरोप और अमरीकाके बहुतसे विद्वान और विचारक इस प्रश्नपर विचार कर रहे हैं कि किस प्रकार युद्ध- के इस भीपण पक्षको पदला जाय। सेना और सामुद्रिक सामग्रीको कम करनेके लिये भिन्न भिन्न प्रस्ताव किये जा रहे है। गत महायुद्धके दिनोंमें कहा जाता था कि यह लड़ाई युद्धको सूत्रको संसारसे काट डालेगी। परन्तु परिणाम ठीक इसके विपरीत हुआ। लड़ाइयां अभीतक पूर्ववत् जारी हैं। घृणा, शत्रुता और मनोमालिन्य सारे संसारमें फैला हुआ है। राष्ट्र राष्ट्रोंके शत्रु हैं। समाजके भिन्न भिन्न समूह एफ दूसरेके रक्तके 'प्यासे हैं। प्रत्येक मनुष्य के हृदय और मस्तिष्कमें प्रतियोगिताका भाव विद्यमान है। मुखसे संसार सहयोग सहयोग पुकारता है। परन्तु अपने कर्मसे सारा सभ्य-संसार एक दूसरेफे साथ सह- योगका यांव फर रहा है यह मसहयोग महात्मा गान्धोके असहयोगके सदृश महिंसा-मूलक नहीं है, परन् इसकी जदमें