भारतवर्षका इतिहास दीवानी और फ़ौजदारी में दीवानी अभियोगोंकी सुनवाई के लिये ऐसा जान पड़ता है कि हिन्दू-काल- अभियोग ।' वेतनभोगी अधिकारी न थे। प्रायः ये अभियोग ग्राम्य पञ्चायतें या नगरों की कमेटियां या व्यवसाः यियोंके समाज अथवा इन सब समितियोंकी सम्मिलित कमेटियां करती थीं। केवल विशेष अवस्थाओं में ही कैन्द्रिक शासनको हस्तक्षेप करनेको आवश्यकता पड़ती थी। न्यायकी यह रीति आधुनिक अदालती रीतिसे अनेक गुना अच्छी थी। आधुनिक अदालती रीति घोररूपसे आपत्तिजनक है। यह न्याय और चरित्रकी हत्या करती है। वर्तमान अधिकारियोंको न समाजका भय है और न लोकमतकी परवाह है। वे ऐसा न्याय करते है जिसको जीवनकी वास्तविक अवस्थाओंके साथ कोई सम्बन्ध नहीं और जिससे वादी और प्रतिवादी दोनोंका नाश हो जाता है । वर्तमान साक्षीका कानून (शहादतका कानून ) कुछ अंशोंमें हिन्दुओंके साक्षीके कानूनसे बहुत सदोप है । अङ्गः रेज़ी अदालतें भारतमें अङ्ग्रेजोंको भारतीयोंकी तुलनामें, धना. ढ्योंको निर्धनोंकी तुलनामें, उपाधिधारी लोगोंको उपाधिहीनों. की तुलनामें, सरकारी कर्मचारियोंको गैरसरकारी लोगोंकी तुलनामें अधिक विश्वास्य समझती है। परन्तु वास्तवमें देखा जाय तो इन श्रेणियोंके लोगोंमें प्रायः सत्यवादिताफा आदर्श ऊँचा नहीं। हमारा अपना अनुभव है कि सरकारी कर्मचारियों में, सरकारी अधिकारियोंमें और धनवानोंमें, निर्धनों, उपाधि हीन और गैरसरकारी लोगोंकी तुलनामें सत्यवादियोंकी संख्या यहुत कम होती है। अतएव इस विषयमें भी हमको यह कहने के लिये कोई कारण नहीं मिलता कि अङ्ग्रेजी अदालती रीति प्राचीन हिन्दु मदालतीरीतिसे अच्छी है। हिन्दुओंमें विचारपति-
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