भूमिका। दूसरा संस्करण। ईसाको अठारहवीं शताब्दीमें यूरोपके लोगोंको भारतीय इतिहास और भारतीय सभ्यताका कुछ शान न-था। अठारहवीं शताब्दीके उत्तरार्द्ध में जय कुछ अंगरेजोंने पहले पहल कई एक संस्कृत पुस्तकोंका अनुवाद किया तो एक अँगरेज़ विद्वान् यह सन्देह करने लगा कि शायद ब्राह्मणोंने संस्कृत भाषाको अव बना लिया है, और इन पुस्तकों की रचना करके यूरोपको धोखा देना आर- मम किया है। पहले पहल यूरोपीय लोगोंने मनुस्मृति, भगव. द्गीता, और कालिदासके शकुन्तला नाटकका अनुवाद किया। इन पुस्तकोंके पाठसे उनकी रुचि बढ़ने लगी। यहाँतक फि फांसीसी और जर्मन लोगोंने संस्कृत-पुस्तकोंको बड़े मूल्यपर खरीद कर और बड़े परिश्रम तथा बड़े व्ययसे उनके यूरोपीय संस्करण प्रकाशित करके अनुवाद कराने आरम्भ किये । इस सम्बंध सयसे अधिक यत और सबसे बहुमूल्य अन्वेषण जर्मन अध्यापकोंने किया। इंग्लैडका सबसे प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान् अध्यापक मेक्समुलर भी जर्मन था। उन्नीसवीं शताब्दीमें यूरोपके प्राच्य विद्याव्यसनी संस्कृतमें निपुणता प्राप्त करनेके लिये निरन्तर यत करते रहे और उन्होंने बहुतसे संस्कृत-ग्रन्थोंके अनुवाद कर डाले। इन अनुवादोंसे उनको भारतीय विद्यामोंका हाल तो मालूम हुआ, परन्तु हिन्दू सभ्यताका पूरा चित्र वेन यना सके। उन्नीसवीं शताब्दीके
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