पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३६५

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हिन्दू और यूरोपीय सस्यताकी तुलना इस बातसे कौन इन्कार कर सकता है कि चन्द्रगुप्त, समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य, हर्ष और भोज आदिकी पदान्यतासे इसी देशके निर्धन मनुष्योंको लाभ होता था। हर्षने प्रयाग-क्षेत्रमें अपना सारा उपार्जित धन लोगोंमें वांट दिया। इसलिये यदि यह भी मान लिया जाया कि राजस्व वर्तमानकालसे अधिक लिया जाता था (यद्यपि इसका कोई प्रमाण नही) तो भी हमें यह कहनेपर विवश होना पड़ता है कि उस समय प्रजा इतनी तंग और दुखी न थी जितनी कि प्रायः भारतमें इस समय है आजकल भूमिके स्वामित्वके विषयों भूमिका कर और प्रायः विवाद होता है कि सरकार समस्त भूमिका स्वामित्व । भूमियोंकी स्वामिनी है या नहीं, और जो कर दिया जाता है वह राजस्य है या लगान ( रेवीन्यू या रेएट)। अंगरेज लेखक प्रायः यह कल्पना कर लेते हैं कि भारतमें प्राचीन कालसे राजा समस्त भूमियों का स्वामी समझा जाता था। परन्तु अनेक अंगरेज विद्वान इसका खण्डन करते हैं। और यदि उन प्रमाणोंको पढे जो प्रो० रिस डेविड्सने अपनी पुस्तक "युधिस्ट इण्डिया में दिये हैं और जो अन्य विद्वानोंने संग्रह किये है तो हमें कुछ भी सन्देह नहीं रह जाता कि प्राचीन भारत- में ये सब भूमियां जो किसी ग्राममें सम्मिलित गिनी जाती थीं, ग्रामका सम्मिलित स्वत्व (मुश्तरका मिलकियत) मानी जाती थीं। न राजाको अधिकार था कि चाहे जिसको दे दे, और न भूमिपर अधिकार रखनेवाले व्यक्तियों और कपकोंको अधिकार था कि वे ग्रामकी पञ्चायतको स्वीकृति के बिना दूसरे लोगोंके हाथ उन्हें स्थानान्तरित कर दें। राजाको केवल इतना अधिकारथा कि यह समिष्टिरूपसे गांवसे उपजका .०८३ या .. या १२५ या .१६ भाग राजस्व में प्राप्त करे। किसी किसीराज