1 , हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना ३१५ दिया है और इस बात पर्याप्त प्रमाण मिल गये है कि ऐतिहा. सिक काल में भी भारतमें प्रजातन्त्र राज थे। वास्तवमै पूर्वीय अनियन्त्रित राजसत्ताका जो चित्र यूरोपीय लोगोंने तैयार किया है उसका अस्तित्व के ग्ल यूरोपीय लोगोंकी फरपनामें है। भारत में किसी समयमें भी कभी इस प्रकारकी स्वेच्छाचारिता "किसी बड़े परिमाणमें नहीं हुई। वढेसे बढ़े और कठोरसे कठोर स्वेच्छाचारी राजाके समयमें कैन्द्रिक शासनका परोक्षप्रभाव प्रजाके बहुत थोड़े भागपर रक्षा । देशको प्रजा दो भागों में विभक्त की जाती है-अर्थात् नाम और नगर । ग्रामोंका प्रबन्ध ऐनिहा- सिक कालके पहलेसे आरम्भ होकर मंगरेजी शासनके भारम्भ कालतक सदा प्राम्य पञ्चायतोंके हाथमें रहा और सामान्यतः कभी किसी केन्द्रिक शासनने ग्रामोंके भीतरी प्रबन्धों अधिक हस्तक्षेप नहीं किया। इस पातके भी पर्याप्त प्रमाण मौजूद हैं प्राम्य पञ्चायतें। किन ग्राम्य पञ्चायतोंका निर्वाचन प्रजातन्त्र नियमोंसे होता था। ये अपने अपने ग्रामोंके लोकमत और सर्व- साधारण के भावोंको प्रबाट परती थीं। इन पञ्चायतोंमें समाज- की प्रत्येक स्थिति और प्रत्येफश्रेणीके प्रतिनिधि सम्मिलित होते थे । शूद्रोंके प्रतिनिधि भी लिये जाते थे। पुछ यवस्थाओं में खियां भी इन पञ्चायतोंकी सदस्या चुनी जाती थी प्रबन्धक भिन्न भिन्न विभाग समितियोंके सिपुर्द होते थे। दक्षिणके मामा- के इतिहासमें इस बात के भसंख्य प्रमाण मिलते हैं कि प्रत्येक प्राममें एक निर्वाचित सामान्य सभाके अतिरिक्त प्ररन्धके भिन्न भिन्न विभाग भित्र भित्र निर्गचित परिपदों के अधीन थे। उदा. हरणार्ध सिंचाईको कमेटी, वाटिकामोंकी कमेटी, यमियोगों के निर्णयको कमेटी, सोने चांदीकी पामेटी इत्यादि सर पृथक पृथक
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३५७
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