पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३५०

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३०८ भारतवर्षका इतिहास.. : .' प्रचारक सबसे पहले तत्कालीन शात संसारके भिन्न भिन्न भागों में प्रचारके लिये गये। महाराज अशोकने प्रचारकोंकी मिन्न भिन्न मण्डलियां पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिणको भेजी। परन्तु इस बातका कोई प्रमाण विद्यमान नहीं कि इन धर्म-प्रचारकोंने दूसरे देशोंमें जाकर लोगोंके प्रचलित धम्मापर अनुचित आलोचना की और जब यहांके राज्योंने उनपर कठो. रता की तो भारतीय राज्यने उन कठोरता करनेवालोंके विरुद्ध युद्ध-घोषणा की। आज यूरोपीय राज्य अपने धर्म प्रचारकोंको राजनीतिक और सैनिक प्रवेशका अग्रगामी बनाते हैं। धर्म- प्रचारक विदेशोंमें जाते है। वहां जाकर स्थानीय धर्मों पर आक्षेप करते हैं। जब वहांके लोग उनका विरोध करते हैं तो वे अपनी गवर्नमेंटका सहारा ढूंढ़ते हैं । गवर्नमेंटें इन अवसरों- को गनीमत समझकर उनको अपनी राजनीतिक और आर्थिक- शक्तिका विस्तार करनेके लिये उपयोगमें लाती है। प्राचीन फालमें बौद्ध-धर्मके प्रचारकोंने दूसरे देशोंमें जाकर प्रचार किया। परन्तु अपने प्रचारके लिये अपनी सरकारकी सहायता नहीं ढूंढ़ी। और इस कारणपर कभी किसी हिन्दू या बौद्ध, राज्यने किसी जाति या किसी वाय शक्तिके साथ लड़ाई झगड़ा नहीं किया। हिन्दू मार्यो'ने तो कभी किसी जातिपर अपने धर्म और अपनी सभ्यताको समेकी चेष्टातफ नहीं की। कुछ लोग यह फहेंगे कि यह सत्य घटना उनकी तुच्छताका प्रमाण है। विश्वव्यापी राज्यकी इच्छा करना मनकी उच्चताका चिह्न है । परन्तु हमको इस युक्तिके स्वीकार करनेमें मापत्ति है। हमारी सम्मतिमें साम्राज्यवादका भाव और संसार में एक ही धर्म और एक ही सभ्यताके फैलानेका विचार प्राकृतिक नियम- के विरूव है और इससे संसारमें बहुत कुछ उपद्रव, विनाश मौर