पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३४८

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६ ३०६ भारतवर्षका इतिहास कमी किसीने पढ़नेका यल नहीं किया। यह भाग भी, जो सिन्धु नदीफे पश्चिम है, कभी किसीने जान बूझकर विजित नहीं किया। सिन्धु नदी और हिन्दूकुशके वीचका जो इलाका हिन्दू-राज्यों में सम्मिलित हुआ उसका बड़ा कारण यह था कि उस समयमें उस प्रदेशके लोग जातिसे, धर्मसे, सभ्यतासे मौर भाषासे हिन्दू-आर्योके सम्बन्धी थे। फिर भी एक कारण: यह बताया जा सकता है कि चन्द्रगुप्त, अशोक, समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य और हर्पने अपनी रक्षाके विचारसे मागे बढ़ना उचित न समझा हो कि कहीं उनके पीछे उनका राज्य छिन्न मिटा न हो जाय। परन्तु जब हम यह देखते हैं कि समुद्रगुप्त अपनी राजधानीसे चलकर निरन्तर दो वर्षतक दक्षिणी राज्यों- को विजय करनेमें लगा रहा और उसकी अनुपस्थितिमें उसके केन्द्रिक राज्यमें कोई विद्रोह नहीं हुआ तो हमें यह युक्ति अकाट्य नहीं प्रतीत होती। यह भी कहा जा सकता है कि भारत स्वयं इतना लम्बा चौड़ा और इतना विस्तृत देश था कि यह बड़ेसे बड़े आक्रमणकारी और पढ़ेसे बड़े राजनीतिक लोलुपकी लाल- साओंके लिये पर्याप्त अधिक था। अस्तु, चाहे कुछ ही कारण हो, यह सत्य घटना विचारणीय है कि अपनी सर्वोत्तम शक्तिके समयमें भारतीय शासकोंने कभी भारतके बाहर अपने राज्यको बढ़ानेका यत्त नहीं किया। इस सिलसिलेमें यह बात हिन्दू-आर्य साम्राज्यवाद- मी विशेषरुपसे द्रष्टव्य है कि का भाव। हिन्दू-राजनीतिक पद्धतिका यह एप. प्रामाणिक सिद्धान्त रहा है कि जिन प्रदेशोंको हिन्दू माप्यों, यौद्धों या 'जैन राजाओंने विजय किया उनमें अपनी राजनीतिक सत्ताको, वहाँके धर्म और सभ्यताको बदलनेके लिये