पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३४७

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हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना ३०५ और हिन्दू-उन्नति सचाईको चरमसोमातक पहुंच चुकी है और उसमें अव भविष्यमें न उन्नतिकी गुमायश है और न आव. श्यकता ही है। उनका यह विश्वास है कि उनके पाप-दादा पूर्ण मनुष्य थे और जो कुछ घे कर गये या कह गये वह मानवी उन्नतिमें अन्तिम शब्द था। इस विचारके रखनेवाले भारतीय • अपनी जातिको पीछे ले जाना चाहते हैं। परन्तु ये भूल जाते हैं कि आपका भारत वह भारत नहीं है जो विक्रमीय संवत्से तीन सहस्र वर्ष पूर्व था या जो ईसाके संवत्की पहली पारद शता-' दियोंमें था और इसलिये उसको दुवारा पहली अवस्थापर ले जानेकी चेष्टा व्यर्थ ही नहीं वरन् असम्भव है। इस यलमें भी हमको इतना समय लगेगा कि हम चिरकालतक दासत्वकी जजीरोंमें जकड़े रहेंगे। इन कारणोंसे में उचित समझता हूं कि हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना करके दोनों सभ्यताओंका एक संक्षिप्त साचिन नवयुवक भारतीयों के लिये पाँच हूँ, ताकि घे स्वतन्त्ररूपसे सम्मति सिर कर सकें। इस प्रयोजनके लिये उचित प्रतीत होता है कि मैं हिन्दू-इतिहास और हिन्दू-सभ्यताको कतिपय मुख्य मुख्य विशेषताओंका वर्णन करू। हिन्दू आर्योने कभी भारतके बाहर सबसे पहले यह बात द्रष्टव्य है कि हिन्दू आर्य आक्रमण नहीं किया । लोगोंनेथपनी सर्वोत्तमराज- नीतिफ शातिय समयमें भारत के बाहर किसी जातिपर आक्रमण करनेकी चेष्टा नहीं की। ऐतिहासिक कालमें कई हिन्दू राजा ऐसे प्रबल हो गये हैं जो यदि तलवारके ज़ोरसे फुछ पाश्चात्य देशों- को जीतनेकी चैा करते तो आवश्यक न था कि उनको विफ- लता होती। यह अवश्य है कि हिन्दू-सत्ताके सर्वोत्तम कालोंमें हिन्दू-राज्य हिन्दूकुश पर्वतमालांतक रहा परन्तु इसके यागे