सुदूर दक्षिणके राज्य २६१ पाण्ड्यवंशके राजत्वकालमें लड़ासे लङ्काके भाक्रमण। दक्षिण भारतपर दो आक्रमण हुए । महा. वंशका प्रणेता लिखता है कि लडापाले जीत गये परन्तु स्थानीय इतिहास साक्षी देते हैं कि माक्रमणकारीको पीछे हटना पड़ा। सन् १६४ ई० में पाण्ड्य राज्य चोल पाण्ड्य राज्पका अंत। राज्पका करद हो गया। परन्तु यह छोटे मोटे राजामोंके रूपमें लगभग सोलहवीं शताब्दीतक जीवित रहा। चेर या केरल राज्यकी चेर या केरल राज्यके इतिहासमें जो यात विशेष रूपसे पल्लेखनीय प्रतीत होती राजनीतिक संस्थायें। है वह यह है कि उनके राजस्वकालमें हातमा शासन अधिकांशमें प्रजातन्त्र नियमोंपर चलाया जाता था। इसका प्रभाव सारे राज्यपर पहता था ।गांवोंमे भिन्न भिन्न समायें प्रयन्यमऔर विचार सम्बन्धी अधिकारोंका उपयोग करती थीं। इस राज्यका इतिहास भी ईसाके संवत्को मार- म्भिक दो शताब्दियोंतक पहुंचता है। एक समयमें ट्राघडोरका प्रदेश भी इस राज्यमें था। इसके इतिहासपर सर्वोत्तम पुस्तक श्रीयुत सुन्दरम् पिल्लेकी है। (२) चोल राज्यकी कथा । ऐतियोंके अनुसार चोल प्रदेशका नाम चोलमण्डल था जिसका अपनश कोरोमण्डल हो गया। इसके उत्तरमें पेन्नार और दक्षिणमें पेलाय मदी थी पश्चिममें यह राज्य फुर्गकी सीमा- तक पहुंचता था। अर्थात् इस प्रदेशमें मदरास, मैसूरफा बहुत
- देखो विमए सिपशा तिहास,
तोसरा मस्कर, +बिसेट भिष पृष्ठ ५१.॥ । प