दक्षिण और मैसूरका वृत्तान्त २८३ प्रतीत होता है कि भजन्ताकी प्रसिद्ध गुहायें, जो अपनी चित्रकारी भौर भालेख्यके लिये संसारकी अद्भुत वस्तुओंमें गिनी जाती है, इसी राजाके समयमें निर्मित हुई। चीनी यात्री नसाङ्ग सन् ६४१ ई० में पुलकेशिनके दरवारमें भाया । उस समय अजन्ताकी गुहाये तैयार हो चुकी थीं। पुलकेशीको सन् ६४२ ई० में कांचीके पल्लव राजाने पराजित किया । परन्तु तेरह वर्ष पश्चात् पुलकेशिनके पुत्र विक्रमादित्य ने अपने यापका बदला लिया दौर कांचीपर अधिकार कर लिया। पल्लवों और चालुक्योंके बीच आठवीं शताब्दीके मध्यतक लड़ाइयां जारी रही। फिर सन् ७५३ ई० में राष्ट्रकूट जातिके एक मरदारने चालुपपोंके राज्यको उखाड़ दिया। यद्यपि चालुक्यवंशके राजपूत अपनी वंशावली ध्रीरामचन्द्रजीके साथ मिलाते हैं पर कहा जाता है कि वे दुमरी जातिके थे। धार्मिक परिवर्तन। इन दो सौ वर्षो में बौद्ध धर्मके पतनपर जैन और पौराणिक हिन्दू-धर्मने बहुत उन्नति की। विष्णु, शिव और अन्य देवी देवताओंके अगणित नन्दिर इस कालमें तय्यार किये गये। बादामिमें छठी शताब्दीकी जो पौराणिक गुफायें मौजूद हैं। वे तक्षण-विद्या और आलेख्य- के अतीव महत्तायुक्त उदाहरण हैं । दक्षिण महाराष्ट्र देशमें जैन- धर्म यहुत जनप्रिय हो गया था। पार्सियोंकी पहली वस्ती खुरासानसे चलं. बर्दुरत । कर सन् ७३५ ई० में यम्बई के समीप थानामें भाकर स्थापित हुई। राष्ट्रकूटवंशके कामोंमें सबसे प्रसिद्ध इलोराकी गुफा है जो कैलासका मन्दिर कहलाती है। इस • पूरे मंदिरको पर्वतमेंसे काटकर बनाया गया है। संसारमें जितने भी भवन पर्वतोंको काटकर बनाये गये हैं उनमें यह सबसे सुदर और महत्तायुक्त है।
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