२८० भारतवर्षका इतिहास . यद्यपि सारे भारतका कोई नियमपूर्वक इतिहास मौजूद नहीं तथापि दक्षिणके भिन्न भिन्न भागोंके इतिहासको एकत्र करके दक्षिणका एक क्रमिक इतिहास बनानेके लिये पर्याप्त सामग्री मौजूद है। इस समयतक उत्तर भारतके इतिहासपर अधिक ध्यान रहा है। दक्षिणमें हिन्दू-सभ्यता। यद्यपि दक्षिणमें आर्य-सभ्यता' बहुत देरमें पहुंची, परन्तु यह प्रकट है कि मुसलमानी कालमें दक्षिण भारत आर्य-सभ्यता और हिन्दू धर्मका धाश्रय स्थान रहा और यद्यपि अधिक सम्भव यही है कि वैदिक धर्म इस देशमें अपने वास्तविकरूपमें कभी नहीं फैला, फिर मौ हिन्दू-धर्म और जैन-धर्मने वहाँपर अपने विशुद्धरूपको बहुत अंशतक बनाये रखा। इस समय मी संस्कृतका प्रचार जितना दक्षिणमें है उतना उत्तरम नहीं । भारतके मध्यकालके बहुधा धर्म-सुधारक और विद्वान् दक्षिणमें उत्पन्न हुए। दक्षिण- भारतमें महाराज शंकर और रामानुजका जन्म हुआ। पौराणिक कालमें बहुतसे शास्त्रकार, टीकाकार और दार्शनिक दक्षिणमें उत्पन्न हुए। वेदोंकी रक्षा भी अधिकतर दक्षिणके परिडतोंने की। दक्षिणके घेद-पाठी प्रसिद्ध हैं । यज्ञोंका क्रम भी न्यूनाधिक दक्षिणमें जारी रहा। हिन्दू-संस्कार अपने वास्तविकरूपमें अय.
- महाराज गहराचार्य नाम्बोद्रो जातिके ब्राह्मण थे। उनका जन्म सदर दति-
गामें ना। एक ऐतिबके अनुमार वे मानाचारके एक गांव उत्पन्न हुए और दूमरे तितके अनुसार चिदम्या । रहरने वेदोंका भाथय लेका बोइधर्मका बाग किया और बनारस में आकर गीतापर और उपनिषदोपर माय लिखा । शहर अपने ममय का एक परितोय परिसत पार दानिश पा। उमने काम से अपनी दिग्विजय भारम्भ करके समस्त भारतमें अपने सिद्धान्तका फ्ठे समारोहक साय प्रचार किया पौर चपने सम विपरियोंको परास्त किया। सन् ८९८ ई. में विन्न ३४ वर्ष की सम्बा बमका देहान हो गया। .