२९६ भारतवर्षका इतिहास . अधिक सम्भव यह है कि सन् नदियापर मुहम्मद बिन ११६६ ई० में यख्तियारके पुत्र मुहम्मदने बख्तियारका धावा । बंगालको विजय करनेके लिये एक बड़ी सेना तैयार की। सेनाप्से आगे बढ़कर केवल अठारह सवा- रोंके साथ उसने नगरमें प्रवेश किया। लोग यह समझते रहे कि कोई घोड़ोंका व्यापारी आया है। अन्तको जब वह महलके द्वारपर पहुचा तो उसने तलवार खींच ली और आक्रमण भारम्भ किया। राय लपमनिया उस समय खाना खा रहा था। वहमहलके पिछलेद्वारले भाग गया । उसका सारा कोश, उसकी रानियाँ, दुसरी स्त्रियां और घाँदियाँ सब आक्रमणकारियोंके हाथ आ गई। अगणित हाथी और अपरिमेय लूटका माल विजेताको प्राप्त हुआ। इतनेमें बाकी सेना आ गई। उसने नगरपर अधिकार कर लिया। राय लषमनिया विक्रमपुरको भाग गया। यहाँ जाकर उसकी मृत्यु हो गई। मुसलमान आक्रमणने नदिया नगरको नष्ट करके हिन्दुओंके प्राचीन नगर लखनौतीको अपनी राजधानी बनाया । उसने बहुत साधन अपने राजा फुत्युद्दीनको भेजा। इसके अतिरिक्त उसने अगणित मसजिद, कालेज और उपासना-सान चनचाये। लक्ष्मणसेनकी प्रशंसामें कहा लक्ष्मण सेनके समयमें जाता है कि व्यकिगतरूपसे यह संस्कृत साहित्यकी उन्नति । राला घड़ा विद्या-रसिक और धर्मशील था। उसके राजकवि धोयिने फालिदासके मेघदूतके नमूनेपर एक और नाटक लिखा। गीतगोविन्दका प्रसिद्ध लेषक जयदेय भी इसीके शासन काल में हुमा । यह सब कुछ सीकार करके भी कोई व्यक्ति इस वातको मस्वीकार नहीं कर सकता कि राय लखमनियाके राजत्वकालमें
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