२०४ भारतवर्षका इतिहास यंगालमें वर्ण-व्यवस्था बहुत दुर्बल हो गई होगी। इसी राजाने ब्राह्मणों, चैद्यों और कायस्थों में "कुलीनता" का प्रचार किया। कई ऐतिहासिफ कहते हैं कि इस राजाने गौर या लख. नौतीकी नींव रक्षी। परन्तु विंसेंट स्मिथकी सम्मतिमें यह नगर पहलेसे मौजूद था। सेनवंशके राजा तान्त्रिक हिन्दू थे। उन्होंने हिन्दू-धर्म के प्रचारके लिये मगध, भोटान, चिटागांग, अरा- कान, उड़ीसा और नेपालको अगणित ब्राह्मण प्रचारक भेजें। पल्लालके पश्चात् सन् १९७७ ई० में उसका पुत्र लक्ष्मणसेन गद्दी- पर बैठा 1 इस राजाको मुसलमान इतिहासोंमें राय लखमनिया लिया है। यिहार और बंगालमें पाल और सेन दोनों सेनवंशका अन्त। यंशोंका अन्त मुसलमान माफमणकारियोंके हाथों हुआ। जिस रीतिले कुतुबुद्दीन ऐबकके सेनापति मुहम्मद विन बख्तियारने वंगाल और बिहारको विजय किया उससे अनुमान किया जा सकता है कि यौद्धधर्म के प्रभावसे हिन्दु- ओंकी शक्ति और उनकी प्रबंध-क्षमता कैसी दुर्बल हो गई थी। 'पालवंशने बंगाल और बिहारमें चार सी, साढ़े चार सौ वर्पतक यौद्धधम्म का पालन पोषण किया और सेनवंशक राजागाने 'तान्त्रिक हिन्दू-धर्म का प्रचार किया। परन्तु ये प्राचीन आय्याँ- का प्रबन्ध अपने शासनमें प्रविष्ट न कर सके। सन् १९६७ ई० में 'सब मुहम्मद धिन पण्तियार बिहारमें पहुंचा तो उसने यतीय सुगमतासे बिहार और बंगालको विजय कर लिया। ऐसा जान पड़ता है कि विहार उस समय एक नगरका नाम था। वह पौद्धों. फी शिक्षा और धर्म का भारी केन्द्र था। उसका दुर्ग स्वयं एक शालेज था। कहा जाता है कि मुहम्मद बिन यख्तियार केवल दो सौ सवार लेकर दुर्गमें प्रविष्ट हो गया और इतनी छोटीसी
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