(४) ऐतिहासिक पुस्तकोंमें भी हिन्दुओंके समयका वृत्तान्त बहुत ही कम है। इसका फल यह है कि वर्तमान रीतिसे शिक्षा पाये हुए नवयुवकोंको अपनी जातीय वातोंका बहुत कम और प्रायः संयथार्थ ज्ञान है। बहुतसे हिन्दू नवयुवकोंको यथार्थ रूपसे यह ज्ञात नहीं कि वेद कितने हैं और वर्तमान धर्मों का उनके साथ क्या सम्बन्ध है। यहुतसे रीति-रिवाज हमें इस समय झूठे और व्यर्थ देख पड़ते हैं, और हम उनको सर्वथा छोड़ देनेपर उद्यत हैं। परन्तु यदि हमें उनके मूलका पता हो तो शायद हम उन्हें न छोड़े, अथवा इस प्रकारसे उनका सुधार कर सके कि वास्तव में वे जिस लाभ लिये बनाये गये थे यह कम हो। कालके परिवर्तनसे हममें बहुतसे दोष आ घुसे हैं। परन् हमें पूर्ण विश्वास है कि यदि हमारी जातिमें अपने अतीत इति हासका यथार्थ शान फैल जाय तो वे दोष और वे बुराइयाँ घादुर शीघ्र धीर यहुत हदतक दूर हो जायें। एक समय था जब इस देशमें, और इस जातिमें पढ़ लिखनेका बहुत रिवाज था और यहाँके लोग प्रायः विद्या-व्यसन समझ जाते थे। परन्तु इस समय जातिका एक बड़ा भान लिखना पढ़ना भी नहीं जानता। एक समय था जब यह जाति सामान्यतः सत्यवादी थी मिथ्या-भाषणको, झूठी साक्षी देनेको, और कपट और छलंय घड़ी घृणाकी दृष्टिसे देखा जाता था या भय यह समय आ गर है कि हमारे यहुतसे वर्तमान राजकर्मचारी सामान्यतः भारत “पासियोंको झूठा समझते हैं। ऐसे ही हमारी वीरता, हमा शीा, हमारी याहरी और भीतरी स्वच्छता, और हमारी ईम नदारी सब रट हो गई, और हम वर्तमान अपमानित दशा प्राप्त हो गये। हमें पूर्ण विश्वास है कि यदि हमारे यालक
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