मध्यवती प्रान्त बुन्देलखण्ड और मालवाके हिन्दू-राज्य २६६ मालवाके परमार मालवाके पवार था परमार वंशको उपेन्द्र नामक एक सारने, जिसको इतिहास- राजपूत । में कृष्णराज भी कहा है, चलाया। विंसेण्ट स्मिथको सम्मतिमें उपेन्द्र आबू पर्वतके समीप चन्द्रावती और अचलगढ़में आया। वहां उसकी जातिके लोग चिरकालसे बसते थे। इस वंशके राजाभोंने संस्कृत-साहित्यको उन्नत करने के लिये विशेषरूपसे प्रसिद्धि पाई है। उनका सातवां राजा मुअ न केवल कवियोंका आश्रयदाता था वरन् स्वयं मी अच्छा कवि था। यह अपनी विद्वत्ता और वाग्मिताके कारण बहुत प्रसिद्ध हुमा है। संस्कृतका प्रसिद्ध लेखक धनमजय और उसका भाई धनिक उसके दरवारकी शोभा थे । इस राजाने चालुक्य जातिके राजा तैल द्वितीयसे सात युद्ध किये। छः यार उसने जीता परन्तु सातवीं बार वह पकड़ा जाकर मारा गया। मुक्षका भतीजा, जो भोजराजके नामसे प्रसिद्ध राजा भोज। हुआ, सन् २०१८ ई० में धाराकी गहीपर बैठा। धारा उस समय मालचाकी राजधानी थी। यह राजाभी अपने चाकी भांति युद्ध और शान्तिकी कलाओंमें निपुण था। एक विद्यारसिक राजाके रूप में उसकी प्रसिद्धि अबतक कम नहीं हुई। हिन्दू इसको अवाक बहुत सम्मान और प्रेमसे याद करते है और उसको आदर्श राजा मानते हैं। ज्योतिप, वास्तुविद्या, पद्यरचना और अन्य विषयोंपर यहुतसे ग्रन्थ उसके नामसे प्रसिद्ध हैं। स्मिथ लिखता है कि समुद्रगुप्तको भांति यह राजा असा. धारण योग्यता रखता था। धारामें इस समय एक मसजिद उस स्थानपर खड़ी हजहां भोजने सरस्वती देवीका मन्दिर बनाया था और जिसके बीच संस्कृतका एक कालेज स्थापित किया था ।
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