भारतवर्पका इतिहास कीर्ति वर्मन कीर्ति वर्मन चन्देलका नाम संस्कृतके प्रसिद्ध नाटक प्रयोध चन्द्रोदयसे सम्बद्ध है। यह नाटक सन् १०६५ ई० में उसके दरवारमें खेला गया था। यह खेलके रूपमें वेदान्तके सिद्धान्तोंकी शिक्षा देता है । चन्देल वंशका अन्तिम राजा परमाल सन् १२०३ ई० में कुत्बुद्दीन ऐयकके हाथले पराजित हुआ । एक मुसलमान ऐतिहासिक कालिअरके दुर्गके विजयका वर्णन करते हुए लिखा है कि कालिञ्जर-नरेशने रण-क्षेत्रसे भागकर दुर्गमें शरण ली और उसने दुर्गमेंसे सन्धि करनेका यत्न किया। परन्तु संधिः की शर्तों को पूरा करनेके पहले ही उसका शरीर छूट गया। उसका दीवान अजयदेव जबतक दुर्गमें अन्न और जल समाप्त नहीं हो गया तबतक सामना करता रहा। अन्तको भूख और प्याससे तङ्ग आकर सेना दुर्गसे बाहर निकली और नगरको छोड़कर चली गई। दुर्ग मुसलमानोंके अधिकारमें था गया। मुसलमान ऐतिहासिक लिखता है कि मन्दिरोंकी मसजिदें बना. दी गई और मूर्ति-पूजनका नाम-निशान उड़ा दिया गया। पचास सहस्त्र मनुष्य बन्दी हुए और अगणित हाथी, पशु और शस्त्र, विजेताके अधिकारमें आये । इसके पश्चात् कुछ समयतक चन्देल जातिके कुछ छोटे छोटे राजा बुन्देलखण्डमें राज्य करते रहे। बङ्गालके अन्तर्गत मुंगेरके समीप गिधौरका राजा इस चंशका प्रतिनिधि गिना जाता है। इस वंशके अन्तिम राजाओंका चेदिके कलचुरि राजा। अन्तिम उल्लेख इतिहासमें सन् १९८१ 10 में आता है । इस वंशके राजपूत संयुक्तप्रान्तके बलिया जिलेमें यसते हैं और उनको योवंश कहते हैं।
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