अनुवादकका निवेदन। श्रीमान् लाला लाजपतरायका नाम, उनकी अनन्य देशभक्ति और राजनीतिक परिज्ञानके कारण, आज केवल भारतहीमें नहीं परन् समस्त भूमण्डल में प्रसिद्ध हो चुका है। लालाजीको भारम्भसे ही भारतीय इतिहासपर विशेष प्रेम रहा है। उन्होंने संवत् १९५५ वि०में इस विषयपर उर्दू में एक छोटी सी पुस्तक भी लिखी थी। जनताने उसका अच्छा स्वागत किया था। इसके पश्चात् इन्हें यूरोप और अमरीका आदि स्वतन्त्र देशों में कई वर्पतक रहने और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिका अध्ययन करनेका अच्छा अवसर मिला है। कहें तो कह सकते हैं कि संसारकी राजनीतिका जितना अच्छा ज्ञान लालाजीको है उतना हमारे वर्तमान नेताओं से बहुत कमको होगा। इसलिये इस नवीन भारतका-हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, बौद्ध, भौर यहदी बादि भिन्न भिन्न जातियोंकी खिचड़ी भारतका, राष्ट्रीय इतिहास लिपनेके लिये लालाजीसे बढकर उपयुक्त मनुष्य मिलना सुगम नहीं। बड़े हर्पकी बात है कि आपने अपने जेल- जीवनको भारतका इतिहास लिसनेमें लगानेका निश्चय किया । है। प्रस्तुत पुस्तक उनके इसी शुभ निश्चयका सुफल है। यह . उस वृहद् ग्रन्थया केवल प्रथम भाग है जो श्रीमान् लालाजी भारतीय इतिहासपर लिखनेका विचार रखते हैं। हमें पूर्ण भाशा है कि भारतीय जनता लालाजीके इस ग्रंथको पढ़कर उनसे ऐतिहासिक परिज्ञानसे लाभ उठानेका यत करेगी। साहित्य-सदन, लाहौर।
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।