महाराजा हर्ष और चीनी पर्यटक ा गसाइ दिनतक बराबर जुलूसमें लायी जाती थी। सवारीके जुलूसमें बीस राजा और तीन सौ हाथी होते थे। छतरी स्वयं हर्पके हाथ थी। उसने शुक्र देवताका घेष धारण किया था। राजा कुमार जो उस समय सब राजाओंमें प्रतिष्ठित था, बलाके वेपमें चंवर करता था । राजा मार्गमें चारों ओर मोती और भन्य बहु. मूल्य वस्तुयें यखेरता जाता था। मण्डपके द्वारपर जुलूस ठहर गया और मूर्तिको एक सिंहासनपर बैठाया गया राजाने स्वयं अपने हाथ मूर्तिको स्नान कराया । फिर उसको ले जाकर सिंहासनपर स्थापित किया और उसके सामने सहस्रोंकी संख्या- में रेशमके वस्त्र जिनमें मोती और हीरे जसे हुए थे, भेंट किये ! सब साधुनों और उपस्थित जनोंको खाना खिलाने के पश्चात् ह्या नसानको इस सभाका प्रधान यनाया गया। हा नसाइने उप- स्थित जनोंको ललफारा कि यदि कोई व्यक्ति मेरी एक भी युक्ति काट देतो उसको अधिकार होगा कि मेरा सिर काट ले। परन्तु फिसको साहस हो सकता था फि राजाके मित्र ह्य नसाङ्गके साथ शास्त्रार्थ करे। चीनी यात्री लिखता है कि अठारह दिग- तक इसी प्रकार होता रहा और किसीने शास्त्रार्थ करनेका साहस न किया । अन्तको यह समा अतीव अप्रिय रीतिसे समाप्त हुई। चीनी पर्यटफ विपक्षियोंफे पड़यन्त्रले फिसीने मण्डपमें भाग लगा दी और राजापर भी चार किया। कहा जाता है कि पांच 'सौ प्रालणोंने अपराध किया और वे देशसे निर्वासित किये गये।. इसी वर्ष इलाहाबादमें प्रयागके स्थानपर एक मेला था जो हर पांचचे वर्ष हुआ करता था। यहां राजा स्वयं जाकर असंख्य धन, दानमें बांटा करता था। कहते हैं इस अवसरपर जो मेला हुला वह अपने प्रकारका छठा मेला था | सभी फरद राजे और लगभग पांच लाख मनुष्य, जिनमें प्रत्येक प्रकारके साधु भोर
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