समयके अतीव सुन्दर चित्र और कलाके अन्य नमूने बनारसके समीप सारनाथमें मौजूद है। पत्थर और ईटोंकी इमारतोंको अगुतालयकी शोभा बढ़ा रही है, द्वितीय चन्द्रगुप्त के समयकी है। पांचवीं शताब्दीमें द्वितीय चन्द्रगुप्त और उसके पुत्रके शासन खड़ा है, संसारकी अद्भुत वस्तुमसे एक है। यह चन्द्रगुप्तके कालमें भारतीयोंने इन कलाओं में निपुणताकी पराकाष्ठा दिख• भारतवर्पका इतिहास २२० . कालके समझ जाते हैं। वायु पुराण भी अपने वर्तमान रूपमें चौथी शताब्दीके पूर्वार्द्ध की ही रचना गिना जाता है । दूसरी विद्यायें। गुप्तवंशके शासन-कालमें 'भारतमें गणित और ज्योतिपने बहुत उन्नति की। उस समयके तीन गणितज्ञ प्रसिद्ध है-एक आर्यभट्ट जो सन् ४७६में उत्पन्न हुआ, दूसरा वराहमिहिर जिसका समय सन् ५०५ ई०से सन् ५८७ तक गिना जाता है, और तीसरा ब्रह्मगुप्त जिसका जन्म सन् ५८८ ई. में हुआ। संगीत, स्थापत्य, चित्र और भालेख्यकी विद्यायें भी इस कालमें बहुत उन्नत हुई। उस समयके यहुतसे भवन मुसलमानी परिवर्तनोंमें नष्ट हो गये। पर जो विद्यमान हैं उनसे उस कालकी चरमोन्नतिका अनुमाग हो सकता है। उनमेंसे झाँसीके जिलेमें देवगढ़के स्थानपर पत्थरका एक मन्दिर विद्यमान है। इसकी दीवारोंपर भारतीय चित्रकारीके कुछ अत्युत्तम नमूने हैं । कान पुरके जिलेमें भी ईटोंका बना हुआ एक मन्दिर है। परन्तु उस छोड़कर उस समयके कारीगरोंने धातुओंके उपयोगमें भी सूर निपुणता प्राप्त की थी। दिल्लीका मोनार जो कुत्य साहयके समीर समयमें बनाया गया था। छठी शताब्दीके अन्तमें नालन्दने महात्मा बुद्धकी एक तावकी ८० फुट ऊँची मूर्ति, बनाई गई। सुलतानगंजकी मूर्ति, जो ऊँचाईमें 90 फुट है और अब निर्महमके
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