पासे योग पपवित्र हो जाते थे । समवत: पोइ-कालमें नव किगिकारी.सा लगे। यहां तक कि नर वे नगर में प्रवेश करते वो कदाचित् टोल बनाकर लोमोको २१४ भारतवर्षका इतिहास ऐसा अस्पताल था जहां न केवल चिकित्सा और औषध ही मुफ्त मिलती थी वरन् भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुए भी बिना मूल्य दी जाती थीं । फाहियानने पाटलीपुत्र में तीन वर्ष रहकर संस्कृत पढ़ी और यौद्ध-धर्मकी पुस्तकोंका अध्ययन किया। सिन्ध नदीसे लेकर . 'मथुरा पर्यन्त वह स्थान स्थानपर चौद्ध मठोंको लांघकर पाटलिपुत्र पहुचा । इन मठोंमें सहस्रोंकी संख्यामें भिक्षु रहते थे। 'स्व' मथुरामें बीस इस प्रकारकी संस्थायें थीं जिनमें तीन सहस्र भिक्षु रहते थे। फाहियान लिखता है कि "समस्त देशमें कोई मनुष्य किसी जीवको नहीं मारता। न कोई मदिरा पीता है, न प्याज या लहसन खाता है, न सूअर या फुझुट रखता है। भारतके लोग पशु नहीं वेचते। न मण्डोके पास बूचड़ोंको दूकानें हैं न शराय-खाने हैं। चाण्डाल लोग-नगरसे पाहर रहते हैं। उनको नगरमें प्रवेश करते समय एक प्रकारसे सूचना देनो पड़ती है, ताकि लोग उनको छुकर अपवित्र न हो जायं "
- हैं कि य रोपका सबसे पुराना पस्पताल पेरिसमें था। यह सातवी शता
दौम बना था। पर सर हेनरी व्रडबुडको सम्मति है कि कांग्टयाउनके शासनकाल तक यूरोपमैं रोगियोंको चिकित्साके लिये कोई प्रबन्ध न था। कांसदानका काल सन् ३०६ या सन् ३०७ ई.३। ऐसा प्रतीत होता है कि वर्षमान छुतशत पहले पहल इसी रीति प्रचलित यपि पाय रीति-नीतिक अनुसार भी पाहाल लोग नगर चौर यामी पाहर रहा करते थे परतु इसके पन्ने उल्लेख नहीं मिलता कि सरे । और चावाल सबके सब एक हो दृष्टिसे देखे जाने लगे, यह प्रथा अधिक दशा पूर्वक स्थापित हो गई और लोग इस प्रकार के लोगोको वतीय पाको दृष्टिले देखने म भूचित किया जाता था।