गुप्तवंशका राज्य विस्तार २०७ पत्ति और वैभव ही प्राप्त किया वरन् पाला-कौशल और विद्यामें ऐसी उन्नति की जो आजतक हिन्दुओंके लिये गौरवका कारण है । इस कालका नाम गुप्तवंशका राजत्वकाल है । यह हिन्दू- इतिहासमें स्वर्णीय समय कहा जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि गुप्तवंशका पहला राजा प्रथम सन् २०८ ई.के लगभग पाटली. चन्द्रगुप्त । पुत्र लिच्छवि कातिके अधीन था। यह जाति मौर्य शके उत्कर्ष पूर्व एफ बड़ी प्रतिष्ठित जाति गिनी जाती थी । चन्द्रगुप्तने लिच्छवि वंशकी राजकुमारी कुमारदेवीसे विवाह करके पाटलीपुत्रपर अधिकार किया। इसके सिकोंमें उसका अपना चित्र है, कुमारदेवीका चित्र है और लिच्छवि जातिका भी उल्लेख है। यह राजा गुप्तवंशका प्रवर्तक हुआ। यह विवाह लगभग सन् ३०८ ई० में हुआ । इस राजाने अपना संवत् चलाया जो २६ फरवरी सन् ३२० ई० से आरम्भ होता है। सम्भवतः इस तिथिको. चन्द्रगुप्तका राज- तिलक हुआ। इस राजाका नाम पहला चन्द्रगुप्त रक्खा गया है। इसीने सबसे पहले गङ्गाकी उपत्यकाके प्रदेशको प्रयागतक अपने अधीन किया। दक्षिणविहार, अवध, तिर्तुत और उसके निकट- घर्ती जिले उसके राज्यके अन्तर्भूत थे । प्रथम चन्द्रगुप्तने अपने राजतिलकके अनन्तर दस या पन्द्रह घर्पतक राज्य किया और लिच्छवि रानीके पुन समुद्रगुप्तको घरपना उत्तराधिकारी बनाया। हिन्दू राजाओं में समुद्रगुप्त अतीय समुद्रगुप्त, हिन्दू- यशस्वी और बहुत योग्य शासक नेपोलियन । हुआ है । उसको यूरोपीय इतिहास- लेखक भारतीय नेपोलियन की उपाधि देते हैं, पोंकि इस राजाने Y $
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