उत्तर-पश्चिमी सीमापर वाखतर और पार्थियाका राज्य २०३ पिलनीने इस बातकी शिकायत की है कि रूम अपने व्यसनको पूरा करनेके लिये प्रति वर्ष प्रचुर धन भारतको भेजता है। इस व्यापारकी मालियत लगभग १५ करोड रुपयों की थी। विला. सिताकी इस सामग्रीके अतिरिक्त भारत के सिंह, चीते और हाथी भी रूमके दरबारोंमें बहुत मुल्य पाते थे। कनिष्क विद्याव्यसनी था और उसने बहुतसी कनिष्का इमारतें बनवाई। तक्षशिलाके निकट जो राजधानी उसने बनाई यह अभीतक सरसुख टीलाके नीचे दबी पडी है और धीरे धीरे निकल रही है। कनिष्पने यमुनाके किनारे मथुराके निकट भी बहुत सी इमारतें बनवाई। मथुराके पास कनिष्ककी एक अतीव सुन्दर मूर्ति निकली है । इस मूर्तिका सिर नहीं है। विंसेंट स्मिथको सम्मतिमें उन कारणोंके होते हुए भी जो कुशन वंशके शासन कालमें विद्यमान थे और जिनका उल्लेख ऊपर हो चुका है, भारतपर यूनानी या रोमन सभ्यताका प्रभाव घहुत ही थोड़ा या नाममान था। बौद्ध धर्मपर अवश्य कुछ प्रभाव हुआ परन्तु ब्राह्मणिक धर्म और जन-धर्मपर उनका बिलकुल असर नहीं हुआ। यूनानी भाषा कभी भारतमें लोकप्रिय नहीं हुई। भारतको स्थापत्य, आलेख्य भऔर तक्षण विद्यापर भी यह प्रभाव बहुत ही परिमित था। भारतीयकला अपने नियमों और नीचों में भारतीय ही रही। आयुर्वेदका प्रसिद्ध विद्वान् चरक भी कनिष्कके समयमें हुआ। वह कनिष्कका राज्य वैद्य था। साहित्य में कनिष्क नामके साथ मश्योप, नागार्जुन और वसुमिनके नाम जुड़े
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