उत्तर-पश्चिमी सीमापर वाखतर और पार्यियाका राज्य १६६ I . महाराज अशोकके समयता बुद्ध-धर्मनी शिक्षा किसी अंशतक शुद्ध रही। परन्तु मिलावट तो इसमें महात्मा बुद्धको मृत्युके पश्चात् ही आरम्भ हो गई थी। महात्मा बुद्धने युक्ति और तर्कसे अपने सिद्धान्तोंको सिद्ध किया। परन्तु उनकी मृत्यु- के पश्चात् उनके अनुयायियोंने तर्क और युक्तिमा परित्याग करके फेवल महात्माजीका शब्द प्रमाण ही पर्याप्त समझा। अशोकके समयतक योद्ध लोगों में इतने मत-भेद हो गये थे कि महाराजा अशोकको यौद्ध भिक्षुओंकी एक सभा करके मत-मेदोंको दूर करनेकी आवश्यकताका अनुभव हुआ। अशोकके समयके जो चौद्ध मन्दिर, मट, विहार, स्तम्भ और स्तूप बने हुए हैं उनमें कहीं बुद्धकी मूर्ति नहीं है। हाँ, दरवाजों, दीवारों और स्तम्भों- पर हिन्दू देवी-देवताओंको मूर्तियां अवश्य धनी हुई हैं। इनको बौद्ध लोगोंने लगभग पूर्णतया मौलिक या परिवर्तित नामोंसे यपने धर्म में ले लिया था। उस समयतक नतो आयोने पर- मात्माकी और न बौद्धोंने भगवान् युद्धकी कोई मूर्ति बनाई थी। ईसासे पक सौ वर्ष के लगभग गान्धारके समीप जो यौद्ध- मठ यनाये गये उनमें पत्थरकी धनी मुई युद्धको मूर्ति रफ्षी गई। कनिष्कके समयतक बौद्ध-धर्म एशियाकी पश्चिमी सीमा- फो पार करके मिस्र और दक्षिण यूनानतक पहुंच गया था, और समस्त मध्य और पश्चिमी एशिया में प्रचलित था। एशिया- का पश्चिमी प्रदेश रोमन साम्राज्यमें मिला हुया था। प्राचीन यूनानी और प्राचीन रोमवाले सब मूर्तिपूजक थे। वे देवी-देव ताओं को भी मानते थे। यूनान, रोमन साम्राश्य और मित्रमें देवताओंके पड़े विशाल मन्दिर थे। मूर्तियोंके यनाने, प्रतिमा- भोंके गढ़ने और मन्दिरोंके निर्माणमें यूनानी शिल्पी जगत्-प्रसिद्ध थे। पापतरमें यूनानी सभ्यताका राज्य था !अप यहां राजा-
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