! प्रकार प्रतिष्ठित भारतवर्षका इतिहास इसका वध करके मगध के सिंहासनको संभाला और एक नया चंश चलाया। यूरोपीय इतिहास-लेषक एशियाका इति- नवीन वंश किस दास लिखते समय अनेक धार घृणा और पक्ष- पातसे यह प्रकट करनेका यत करते है कि होते थे। एशिया नवीन वंशोंकी प्रतिष्ठा प्रायः प्रस्तुत राजाके बंधसे हुआ करती है। परन्तु यह याद रखना चाहिये कि राज्य क्रांतिकी यह रीति केवल पशियातक ही परिमित नहीं है । जब कोई राजा अन्यायपर कमर बांधले या प्रबन्धक उपेक्षा दिखलाये या विलासितामें पड़ जाय तो उसका अवश्य भावी परिणाम प्रजा अशान्ति और व्याकुलता होती है। इस अशान्ति और व्याकुलतासे लाभ उठाकर कोई प्रबल सता मैदान में आ जाती है और जैसा कि हेवल लिखता है, प्रायः कौंसि आव स्टेट (राजसमा ) या प्रजा की स्वीकृति या परामर्श शासनकी बागडोर अपने हाथों लेती है। पश्विममें भी ऐ ही होता रहा और पूर्वमें भी । वर्तमानकाल में जिन देशों में पा मेंट के दङ्ग पर शासन है और जहां राजा कांस्टीटय शनल (वि' विहित ) ढंगसे शासन करते हैं जिनको प्रजाके साथ प्रत रूपसे कोई गस्ता नहीं पड़ता, यहां ऐसा नहीं हो सक , हेवलके मतानुसार हिन्दू राजे महाराजे सदा प्रजाको स्वीक शासन करते थे । चाहे क्रियात्मक रूपले वे निरङ्कश ही र जाते थे। जब कोई राजा या महाराजांनी निरंकुश सोमाया उल्लहुन कर जाता था. बजा किसी प्रबलः:प धारी या सेनापतिको खड़ा करके राज्यकान्ति उत्पन्न कर थी। इस क्रांतिमें यदि राजा स्वयं सिंहासनकों छोड़ना कार नहीं करता था तो वह मारा जाता था। हेपलके वि
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