अपने अधीनस्थ लोगों, भृत्यों, दासों और अन्य जीवधारियोंके भारतवर्षका इतिहास शेष सब लेख प्रारम्भिक ब्रह्मी अक्षरों में हैं। इन्हीं अक्षरोंसे पादमें देवनागरी तथा अन्य भारतीय भाषाओंके अक्षर, जो वायेंसे दायेंको लिखे जाते हैं, निकले। अशोककी मशोकके लेखों और नियमोंका सविस्तर वर्णन शिक्षा। करना यहाँ सम्भव नहीं। परन्तु उसकी शिक्षा अधिक बल, अहिंसा और आवागवनपर है। अशोक बार बार धर्मकी और पवित्र जीवनकी महिमा वर्णन करता है। माता-पिता, वृद्धों और गुरुजनोंके सम्मानकी शिक्षा देता है। आहंसा और पहली आयुमें अशोक शैव धर्मका अनुयायी जीव-रक्षा. था। उसकी पाकशालाके लिये सहस्रों जीव मारे जाते थे। बौद्ध-धर्म ग्रहण करनेके पश्चात् कुछ कालतक उसके भोजनके लिये दो मोर और एक हिरण मारा जाता रहा। परन्तु सन् २५७ ई०पू० में उसने एक- दम भाज्ञा दे दी कि राजकीय पाकशालाके लिये भविष्यमें कोई जीव न मारा जाय। इसके दो वर्ष पहले उसने राजकीय थालेट- का विभाग भी बन्द कर दिया था। सन् २४३ ई०पू० में उसने एक नियम प्रचलित किया, जिसके द्वारा यहुतसे जीवोंका वध करना सर्वथा बन्द कर दिया गया। जो जीव भोजनके लिये मारे जाते थे उनके सम्बन्धमें भी बहुत कुछ सीमावन्धन लगा. दिये। वर्ष में ५६ दिन किसी जीवको किसी भी कारणसे और किसी भी अवस्थामें मारनेकी आशा न थी। बड़ोंका सम्मान और इस नियमके द्वारा उसने प्रत्येक व्यक्तिका यह कर्तव्य ठहराया कि वह अपने माता-पिता और अन्य वृद्धों तथा' गुरुजनोंका सम्मान करे । प्रत्येक व्यक्तिको ताकीद थी कि वह छोटोपर दया।
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