w 1 भारतवर्पका इतः । स्मारकके रूपमें देवपाटन नामका एक नगर बसाया और एक विहारकी प्रतिष्टा की। वह ययतक उसके नामसे प्रसिद्ध है और पशुपतिनाथके उत्तरमें स्थित है। अशोक ललितपाटनको बहुत पवित्र स्थान मानता था। यहां उसने पांच बड़े बड़े स्तूप बनाये, एक नगरके मध्य में और चार चारों किनारोंपर। ये सब भवन भवतक मौजूद है। पूर्व की ओर इसके राज्यमें सारा पङ्गाल. मिला हुआ था। दक्षिणमें कलिङ्ग, आन्ध्र मीर शेप सारा दक्खिन, जो पूर्वी किनारेपर स्थित था, नेलोर प्रदेशसे लेकर पश्चिमी किनारतक, कल्याणपुरी नदीतक पहुंचता था। इसके दक्षिणमें जो पाएडय केरलपुत्र और सतियपुन तामिल राज्य थे ये स्वतन्त्र और स्वाधीन थे। उस सारे साम्राज्यको अशोकने कई भागों. साम्राज्यका में विभक्त कर रक्षा था। इनमें मध्यवर्ती विभाग | , भागको छोड़कर चार राजप्रतिनिधि राज्य करते थे। एक राजप्रतिनिधि तक्षशिलामें रहता था दूसरा कलिङ्गके अन्तर्गत तोवलीमें, तीसरा उज्जैनमें, जिसके दाधीन मालपा काठियावाड़, और गुजरात थे, और चौथेके अधीन यह सारा दक्षिणी देश था जो नर्मदाके दक्षिण में है। अशोकके भवन और उनका अशोक संसारके उन महा- राजोंमेंसे था जिन्होंने बड़े बड़े राजप्रासाद। विशाल भवन बनवाये। ईसाकी पांचवीं शताब्दीफे आरम्भमें जव पहला चीनी यात्री फाहियान पाटलीपुत्रमें आया तो अशोकका राजप्रासाद् अभी खड़ा था। उसे देखकर फाहियानने यह मत प्रकट किया था कि उसको देवों गौर जिन्नोंने बताया होगा। यह राजभवन ऐसा विशाल था .
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