पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२०४

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१७४ भारतवर्पया इतिहास ६-दो तराईके शिलालेख । इनका काल सन् २४६ई०पू० है। ७-सात स्तम्भोंके लेख। ये छः पाठोंमें हैं और ईसाफे पूर्व सन् २४३ और २४२ के हैं। ८-छोटे स्तम्भोंके शिलालेख। ये ई०पू० सन् २४० या उसके पादफे हैं। अशोक स्वयं ऐसा प्रतीत होता है कि चौद्ध-धर्मकी भिक्षु रहा। दीक्षा लेने के पश्चात् ढाई वर्पतक अशोक स्वयं भिक्षु रहा । यह स्मरण रखना चाहिये फि चौद्ध-धर्म में इस यातकी भाशा है कि भिक्षु जिस समय चाहे फिर गृहस्य धन सफता है। ब्रह्मामें इस समय तक यह रीति है कि प्रत्येक नली कुछ फालके लिये विहार (भिक्षु-आभ्रम) में जाफर भिक्षुका जीवन व्यतीत करता है और वहांसे धर्म- शिक्षा ग्रहणकर फिर गृहस्पके काम काजमें लग जाता है। बौद्ध धर्म-स्थानों- सन् २४६ ई० पू० में जय अशोकको गही. परवैठे चौवीस पर्प हो गये थे तब उसने यौद्ध की यात्रा। तीर्थ-स्थानोंकी यात्रा की। दह' राजधानी पाटलीपुत्रसे चलफर उत्तरकी भोर नेपालतक पा'चा। मार्गमें उसने वर्तमान मुजफ्फरपुर और चम्पारनके जिलोंमें पांच यड़े घड़े स्तम्भ पढे कराये। वहांसे पधिमकी भोर चलकर पहले उसने लुम्बिनी काननकी यात्रा की, जहां कहते हैं, महात्मा युद्ध- का जन्म हुआ था। कथा यों है कि इस काननमें उनकी माता मायादेवीको प्रसव-वेदना हुई और यही वृक्षके नीचे यथा उत्पन्न हुमा । उस स्थानपर अशोकने एक स्तम्भ निर्माण कराया जो इस समयतक विद्यमान है। ' इसके पश्चात् महाराजा अशोकने कपिलवस्तुकी यात्रा की जहां महात्मा बुद्धने अपना याल्यकाल व्यतीत किया था। इसके