पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२०३

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महाराजा विन्दुसार और महाराजा अशोकका राजत्वकाल १७३ लिये भी सविस्तर मादेश जारी किये। अशोकका नाम उन शिलालेखोंके लिये विशेषरूपसे प्रसिद्ध है जो उसने अपने राज्यके प्रत्येक कोने में फैलाये और जो कई जगह घटानोंपर और कई जगह स्तम्भोंपर लिपे हुए मौजूद हैं। उनमें से एक शिलालेखमें यह लिखा है:- "वास्तविक विजय यह है जो मनुष्य अपने वास्तविक विजय। अपरधर्म-वलसे प्राप्त करता है। उसने अपने उत्तराधिकारियों को आदेश दिया कि वे पड्गके बलसे देशोंको जीतने का विचार छोड़ दें और यह न समझे कि खड्गके बलसे विजय प्राप्त करना राजाओंका धर्म है। परन्तु यदि उन्हें विवश होकर युद्ध करना पड़े तो भी वे धैर्य और सहिष्णुताको हाथसे न दें और यह स्मरण रपल्ने कि वास्तविक विजय यही है जो धर्मसे की जाती है। महाराज यशोकके शिलालेख आठ प्रकार के है के शिला-लेख। १-चट्टानोंके छोटे शिला-लेपजो अधिक सम्भव है कि सन् २५७ ई० पू० से आरम्भ हुए । इनकी संख्या महाराज अशोक-

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दो है। २-भाव का शिलालेप। यह लगभग उसी वर्षका है जिसका कि संध्या पहलीफा। ३-चौदह पहाड़ी शिला लेप । इसके सात मिन मिन्न पाठ है और ये सम्राटके समयके तेरहवें या चौदहवें वर्षके हैं। ४-फलिङ्गके दो शिलालेप। जो लगभग सन २५६,६० पू० में रित्त कराये गये । ये विजित प्रान्तके सम्बन्धमें हैं। ५--गयाफे निकट वरावरके खानपर तीन गुफाओंके शिला- 5