भारतवर्षका इतिहास 1 समय नहीं योता कि इंग्लैएडमें जादूगरीका दण्ड मृत्यु थी, इत्यादि । मृत्यु-दण्ड भव बहुत थोड़े अपराधोंमें दिया जाता है। परन्तु.नेपोलियनके समयके पहले बहुतसे अपराधोंके लिये मृत्यु दण्ड दिया जाता था। इस सम्बन्धमें स्पेनमें जो दण्ड रोमन कैथोलिक पादरियोंने अपने विरोधियों को दिये घे भी स्मरण रहने चाहिये। फिर भी कौटिल्य के अर्थ-शास्त्रपर यह दोष मारो. पित नहीं किया जा सकता कि उसने ब्राह्मणों के साथ बहुत अधिक रियासत की। ब्राह्मणको पानीमें डवोकर मृत्यु-दण्ड दिया जाता था। दूसरे अपराधियोंको, कहते हैं, आगमें जला दिया जाता था। कुछ अपराधोंके लिये ब्राह्मणको भी खाने खोदने भेज दिया जाता था। यही बर्ताव माधुनिक समयमें कई यूरोपीय राज्य राजनीतिक अपराधियों के साथ करते रहे है। 'ऐसा प्रतीत होता है कि कौटिल्य अपराधोंके प्रमाणके लिये गाना प्रकारके कष्ट देनेको भी उचित समझता था। यह रीति भी यूरोपके राज्यों में आधुनिक कालके कुछ समय पहलेतक प्रचलित थी, और दुर्भाग्यले भारतमें अब भी प्रचलित है। अर्थ-शास्त्र के सिद्धान्त, अय फौटिल्यके अर्थ शास्त्रकी मोटी मोटी याज्ञायें उस कममें राजसत्ताका स्वरूप। लिखी जाती है जिसमें कि उनको यूरोपियन इतिहास-लेखकोंने वर्णन किया है। सबसे पहले यह स्मरण रखना चाहिये कि यद्यपि राजा, देखनेमें, निरङ्कश था परन्तु उसके अधिकारोंपर ऐसे बन्धन लगाये हुए थे जिनसे उसको निरङ्कुशता दूर हो जाती थी। राज्याभिषेकके समय राजाको यह शपथ लेनी पड़ती थी कि प्रजा-पक्षण उसका परम धर्म होगा, और यह रक्षा वह धर्म डाकर परमाने या सम्मति प्रकट की है कि चन्द्रगुप्त का शासन एक प्रका -
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