पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१८८

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भारतवर्षका इतिहास - १५८ सौ वर्षके इतिहासमें कोई ऐसी जाति नहीं जिसने यह न किया हो । गत महायुद्धमें जर्मनीने रूस और इंग्लैण्डकी प्रजामें विद्रोह फैलाने में कोई कसर नहीं उठारपषी । और इंग्लैण्ड तथा झांस. ने जर्मनी आस्टरिया और रूमकी. भिन्न भिन्न चस्तियोंके साथ वैसा ही किया। छल और कपटका कोई भी साधन दोनों पक्षों ने शेप नहीं रखा । विंसेंट स्मिथका कौटिल्यकी शिक्षापर हंसी उड़ाना इसी लोकोक्तिको चरितार्थ करता है कि जहां मनुष्य । अपनी आंखका तिल नहीं देख सकता वहां उसको दूसरोंकी आंखका तिल भी पहाड़ देख पड़ता है। यूरोपीय शक्कियोंने कौन सा काम नहीं किया जिसको कौटिल्यको शिक्षामें विसेंट स्मिथ आपत्तिजनक समझता है । परन्तु हेवल कौटिल्यकी इस शिक्षापर टिप्पणी करता हुआ उसका शुक्ल पक्ष भी उपस्थित करता है। भेदिया अर्थात् सी० कौटिल्यकी शिक्षा में एक और यात भी है जिसपर विंसेंट स्मिथ चार आई० डी० विभाग। घार घड़ी घृणासे टिप्पणी करता ' है। वह उसका भेदिया विभाग है। कौटिल्यने गुप्तचरोंपर बहुत बल दिया है। परन्तु उस समयके सामान्य शील और सत्यप्रियताके स्वभावोंको देखते हुए और इस यातको ध्यानमें रखते हुए कि गुप्तचरोंके दिये हुए समाचारोंकी जांच पड़तालके लिये पांच भिन्न भिन्न विभाग नियत थे, यह कहा जा सकता है कि चन्द्रगुप्तका सी० आई० डी० (गुप्तचर ) विभाग. ऐसा मठी न था जैसा आजकल ब्रिटिश भारतमें भारतीय सरकारका सी० आई० डो० विभाग समझा जाता है। वर्तानिया द्वीप- समूहको शासन-प्रणाली भी गुप्तवर विभागसे शून्य नहीं है। यद्यपि वहांकी पुलीसको भद्रता और सत्यपरायणता स्वीकार