भारतवर्षका इतिहास णामोंसे भिन्न हैं। विसेंट स्मिथ यद्यपि चन्द्रगुप्त और उसके मन्त्री चाणपयकी योग्यता और उनके महत्वको स्वीकार करता है, और यह भी मानता है कि चन्द्रगुप्तका राज्य-प्रवन्ध ऐसा पूर्ण था कि उसकी उपमा प्राचीन संसारके किसी दूसरे देशमें पाई नहीं जाती, यहांतक कि वह इसको यूनानियोंके प्रवन्धसे और अकयरके प्रयन्धसे भी अधिक पूर्ण पाता है, परन्तु कुछ अंगोंमें वह चन्द्रगुप्त और हिन्दुभोंके तत्कालीन राजनीतिक शीलके विरुद्ध, पक्षपातसे, अनुचित टिप्पणी करता है । यात वास्तवमें यह है कि दो एक बातोंको छोड़कर चन्द्रगुप्तके समय- का राजनीतिक शील और राजनीतिक पद्धति वर्तमान कालसे किसी बातमें कम न थी, वरन् कुछ अङ्गों में इससे उत्तम और अधिक पूर्ण यो। यह समझ लेना चाहिये कि कौटिल्यका अर्थ-शास्त्र केवल उन छोटे राज्यों के प्रबन्धके लिये विशेष रूपसे नियत था जिनके 'इर्द गिर्द और छोटे राज्य हों। न तो वह किसी साम्राज्यके प्रवन्धके लिये और न ऐसे राज्यों के लिये विशेषरूपसे नियत था जो प्रजातन्त्र सिद्धान्तपर हों। कुछ आश्चर्य नहीं कि फौटिल्यने यह शास्त्र उस समय यमाया हो जय वह स्वयं शिक्षार्थी था और उसे यह स्वप्नतक मी न था कि चन्द्रगुप्त एक ऐसे विशाल माम्राज्यको प्राप्त करके कौटिल्यको अपना मन्त्री बनायेगा। हिन्दुओंके राजनीतिक शीलके विषयमें महाभारतके शान्तिपर्व- की शिक्षा यौर हिन्दु धर्म-शास्त्रको आज्ञायें ऐसी ही बहुमूल्य हैं जैसे कि शुद्ध राजनीति शास्त्रके ग्रंथ, विशेषतः जयकि उनकी पुष्टि ऐसी घटनाओंसे होती है जिनका उल्लेख बौद्धों और जैनोंकी पुस्तकों तथा हिन्दू-साहित्यकी भिन्न भिन्न शाखा- . मोमें है।
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