. मौर्यवंश-सम्राट चन्द्रगुप्त १४६ चौथा-अश्वारोही। पांचवाँ-सैनिकरथ। छठा-हाधी। हिन्दुओंके धार्मिक, सामाजिक 'मगस्थनीज लिखता है कि और साधारण वृत्तोंके विषयमें साधारणतया देश उस समय वैभवसम्पन्न था। उपजकी यूनानी दूतोंकी सम्मति । प्रचुरता थी। भूमिका. अधि- कांश जलसे सींचा जाता था। अनाज और फलोंको इतनी बहुनायत थी कि उस समय सर्वसाधारणका यह विचार था 'कि "आर्यावर्त में कभी अकाल नहीं हुआ और भोजनके प्राप्त करनेमें कभी सामान्य तो नहीं हुई।" यूनानी दूतको दृष्टिमें अकाल न होनेका एक कारण यह था कि हिन्दुओंमें यह सामान्य प्रथा थी कि वे किसानोंकी रक्षा करना एक विशेष कर्तव्य समझते थे। यद्यपि युद्ध और लडाइयां अधिक होती थीं परन्तु सेतीकी हानि कभी न होने पाती थी। लड़ाईमें खेती और किसानोंके साथ कोई हस्तक्षेप न होता था। यहांतक कि शत्रुके वृक्ष काटनेका मी निषेध था । शिल्प और कला-कौशलमें भी तत्कालीन भारतीय रहे निपुण थे । विशेषतः सोने, चांदी और अन्य प्रकारके जवाहरात. के आभूपण बनाने में देशमें सोने, चांदी, तांबे, लोहे, रांग और अन्य प्रकारकी घातोकी खाने थीं। ये धातें न केवल नाना प्रकारके अलङ्कारों की चीजें यनानेके काम आती थीं वरन् इनसे शास्त्र और युद्धकी अन्य आवश्यक वस्तुयें भी तैयार की जाती थीं। एक स्थानपर मगस्थनीज लिखता है कि "भारतीय यद्यपि सरलखभाव हैं और सादगीको बहुत पसन्द करते हैं, परन्तु रत्नों, अलङ्कारों और परिच्छदोंका उनको खास शौक है।
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