भारतवर्षका इतिहास १४८ पांचवीं समिति कारखानोंका निरीक्षण करती थी। यह बात ध्यान देने योग्य है कि शिल्प और कलाका विभाग कारखानोंसे जुदा था। छठी समिति चुङ्गोकी देखभाल करती थी। सब येची हुई वस्तुओंपर कर लिया जाता था। इस करसे बचनेका यन करनेवाला मृत्यु-दण्डका भागी होता था। सामूहिक रूपसे सारी समिति नगरके साधारण प्रवन्ध की जिम्मेदार थी। मण्डियों, मन्दिरों, बन्दरगाहों, सरकारी भवनोंकी स्वच्छता और निरीक्षण उनका विशेष कर्त्तव्य था।' - [इस प्रवन्धको तुलना यदि नूतन कालकी म्यूनिसिपल, कमेटियोंसे की जाय तो प्राचीन प्रबन्ध कई बातोंमें अच्छा मालूम देगा।] यह तो थी नगगेंके प्रवन्धकी पद्धति । इसी प्रकार प्रान्त भिन्न भिन्न गवनरोके अधीन थे और उनमें भी ऐसा ही प्रवन्ध था। प्रान्तिक अधिकारियों के भी छः विभाग थे:- पहला-कृषि, वन और सिंचाईका विभाग। दूसरा--माप और भूमियां आदि । तीसरा-हिंसक जीवोंको नष्ट करनेका विभाग, इसमें शिकारियोंको पारितोषिक बादि दिये जाते थे। चौथा-राजस्वकी प्राप्ति । पांचवां-शिल्प। छठा-भवन-निर्माण। सेना भी छः भागोंमें विभक्त थी, और प्रत्येक भाग अधि. फ़ारियोंके एक अलग दलके अधीन था। पहला-समुद्री बेड़ा। दूसरा-बैलगाड़ियां,जो सैनिक यन्लोंके लेजानेके काममाती थी। तीसरा-पादचारी सेनाको पलटनें।
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