भारतवर्षका हातहास भारतके राजदरयारों में यह प्रथा आम थी। राजाका शरीर रक्षक प्रायः सशस्त स्त्रियोंका दल होता था। महापद्म नन्दको सेनामें दो लाख पादगामी, सेना। अस्ली सहस्त्र अश्वारोही, आठ सहस्र गाड़ियां और छः सहस्र हाथी थे। परन्तु चन्द्रगुप्तकी सेनामें छः लाख पैदल, तीस हजार सवार, नौ हजार हाथी, और बहुत सी गाड़ियां थीं। प्रत्येक गाडीके साथ तीन और प्रत्येक हाथीके साथ चार सिपाही होते थे। इस सारी सेनाको नंगद वेतन मिलता था। सैनिक व्यवस्था । चन्द्रगुप्तका सेना-विभाग अतीव पूर्ण था। छः समितियां ( वोर्ड) थों और प्रत्येक समितिमें पांच सदस्य थे। समिति संख्या १ समुद्री थी। समिति सं० २ के अधीन कमसरियट, भारवरदारी और शागिर्द पेशा अर्थात् साईस, लोहार और घसियारे आदि थे। समिति सं०३ पलटनोंका प्रबन्ध करती थी। समिति सं०४' रिसालोंका; समिति सं० ५ लड़ाईको गाड़ियोंका और समिति सं०६ हाथियोंका। पाटलीपुत्र नगरका पाटलीपुत्र नगरका भीतरी प्रशन्ध ३० प्रबन्ध म्युनिसिपल कमिश्नरों के हाथमें था। उनकी छः समितियां या बोर्ड थे। समिति संख्या १ का काम कला- 'कौशल और उद्योगधंधेका निरीक्षण करना था। सर्व गौद्योगिक भागड़ोंका निपटारा यह समिति करती थी। यह कारीगरोंके वेतनको दर नियत करती और उनसे पूरा काम लेती थी। शिल्पमें मिलावट या खोटा काम मिलने नहीं देती थी। कारीगरों और शिल्पियोंका स्थान बहुत ऊंचा था। जो मनुष्य कारीगर या शिल्पीको ऐसी हानि पहुंचाता था जिससे उसकी कारीगरीमें फर्क आये उसको घोर दण्ड दिया जाता था। दूसरी समितिका काम था कि सब परदेशीय व्यकियोंकी किसी
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