पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१६६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 १३६ भारतवर्षका इतिहास चलता रहा । अन्तको ईसाके ४७६ वर्ष पूर्व पलाटियाके स्थानपर ईरानियोंकी भारी हार हुई। इन लड़ाइयों के कुछ काल पश्चात् यूनानके भिन्न भिन्न स्वतंत्र नगरोंमें मैत्री रही। यह यह काल है जब कि एपक्षने साहित्य और कलामें खूय उन्नति की, और उसने उस सभ्यताको पूर्ण किया जिसपर यादके यूरोपीय लोगोंने अपनी सभ्यताका भवन खड़ा किया। अन्तको यूनानके भिन्न भिन्न नगरों में परस्पर ईर्ष्या और द्वेषफी लड़ाईका आरम्भ हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि थोड़े ही कालमें एथन और स्पार्टाकी शक्ति नष्ट होकर ईसाके पूर्व चौथी शताव्दीमें राज्य मकदुनिया-नरेश राजा फैल- कसके हाथमें चला गया। उसने कुछ कालके लिये सारे यूनानमें अपना सिका जमा लिया। इस फैलकूसका बेटा महान् सिकन्दर था। यह संसारके उन थोडेसे महापुरुषों में से एक था जिन्होंने संसारके इतिहासपर भपनी छाप लगाई है। महान् सिकन्दरका साहस, संकल्प, और पराक्रम अपार था। उसकी इच्छा थी फिसमस्त संसारको जीत: कर अपने अधीन करे । इस भावसे प्रेरित होकर वह पश्चिमी एशियाको विजय करता हुआ सन् ३२७ ईसापूर्व में हिन्दूकुश- तक पहुंचा। इस कालमें उसने सारे एशिया माइनर, सीलोनियां और ईरानको जीत लिया था । सन् ३२७ ईसा पूर्वमें सिकन्दरने हिन्दूकुशको पार किया और कावुल नदीको घाटीको लांघता हुआ जून या जुलाई सन् ३२७ ईसापूर्व में वह भारतके उत्तर पश्चिमी किनारकी सीमापर आ पहुंचा। उस समय भारतका वह समस्त उत्तर-पश्चिमी भाग जो रावलपिण्डीके उत्तर-पश्चिम- में स्थित है, भिन्न भिन्न स्वाधीन जातियोंके अधिकारमें था। उस प्रान्तका सबसे प्रसिद्ध नगर तक्षशिला था जो विश्वविद्या-