पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१६०

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"भारतवर्षका इतिहास :

मूल पुरुष श्रीवर्धमान महावीर हुए हैं। वे भगवान् बुद्धके सम. कालीन थे। महावीरजी मगध देशके राजकुमार थे। पूर्ण युवा- कालमें ये संसारका परित्याग करके पारसनाथजीके सम्प्रदायमें सम्मिलित हो गये। कुछ वर्षके पश्चात् उन्होंने एक नवीन सम्प्र- दायकी नींव डाली और अपनी शिक्षाका खूय विस्तार किया। उनके जीवन-कालमें अनेक राजपरिवार उनके श्रद्धालुथे, क्योंकि माताकी' योरसे उनका तीन राजपरिवारोंसे सम्बन्ध था। उनके देहान्तकी तिथिके विषयमें यहुत मतभेद है। प्रायः लोग ईसाके पूर्व ५२७ या वर्प निश्चित करते हैं। अध्यापक जेकोबीकी सम्मतिमें वे सन् ४७७ ईसा पूर्वमें पंचत्वको प्राप्त हुए। जैन-धर्मकी जैन-धर्मकी शिक्षा अधिकांश चौद्ध-धर्मकी शिक्षा। शिक्षासे मिलती है। परन्तु सिद्धान्त-रूपसे दोनों धर्म भिन्न भिन्न है। जिस प्रकार चौद्ध- धर्मने हिन्दू समाजमें पूर्ण परिवर्तन नहीं किया और उसमें क्रान्तिकारी हेरफेर उत्पन्न करने की चेष्टा नहीं की, उसी प्रकार जैन धर्मने भी तत्कालीन हिन्दू समाजका सुधार करनेका यता किया। उसने न तो जाति-पातिको उखाड़ा, न देवी देवता; ओंको जवाब दिया, और न उनके रीति रिवाजोंमें बहुत हस्त. क्षेप किया। घौद्ध-धर्मकी तुलनामें जैन साधु बहुत अधिक त्यागी हैं । जैन-धर्मकी पूजन विधि भी बौद्ध-धर्मसे भिन्न है। जैन लोग प्रकृति और जीवको अलग अलग मानते हैं। उन- का यहुत बड़ा सिद्धान्त यह है कि सृष्टिके प्रत्येक पदार्थ में जीव है, केवल मनुष्य और पशु ही सजोत्र नहीं, वरन् समस्त प्रारके पौधों, वृक्षों, सागं पात, धातु-पापाण और मिट्टी भादिमें भी जीव है । जैन स्पष्ट रूपसे ईश्वर के अस्तित्वसे इन्कार करते हैं।