१२६ भारतवर्षका इतिहास करनेके लिये सारे बौद्ध भिक्षुओंकी एक बड़ी समा जुटी। इस सभायो यौद्ध धर्मकी प्रथम समा कहते हैं। इसके एक सौ वर्ष पीछे दूसरी सभा पैशालीमें हुई। इसमें बौद्ध भिक्षुओंको सोना भीर चांदी रखनेकी आशा दी गई। इसके अतिरिक्त आगे लिखे नियमोंसे मालूम होगा कि कैसी छोटी छोटी बातोंपर इन लोगोंमें मतभेद हो गये। (१) सींग पात्र में नमक एकत्र किया जा सकता है । (२) दोपहरकी रोटी उस समय खा सकते है जय सूर्य मध्याहोत्तर दो अङ्गुल नीचेको चला जाय । । (३) दोपहर के भोजन के पश्चात् दही खाया जा सकता है। (४.) जिस भङ्गमें नशा न हो उसके सेवनकी भाशा है। (५) यदि चटाई या योरियेके किनारे न हों तो यह आय. श्यक नहीं कि वह नियत लम्बाई और चौड़ाईका ही हों, इत्यादि।। 'जिस महात्माने वैदिक कर्म-काण्डको इसलिये उड़ा दिया था कि उससे अनावश्यक कष्ट होता था और वास्तविक लोभ कुछ भी न था, उसीके अनुयायियोंने उनको मृत्युके सौ घर्ष पश्चात् इस प्रकारकी छोटी छोटी बातोंको नियम यन्धन लो फंसाया। इसका अवश्यम्भावी परिणाम यह हुमा कि बौद्ध लोगोंमें दो दल हो गये। उत्तरीय प्रदेश अर्थात् तिब्धत, चीन और नेपालके यौद्ध एक सम्प्रदायके हैं और सिंहल तथा प्रमा आदिके दूसरे सम्प्रदायके। योद्ध मतकी तीसरी सभा ईसाके जन्मके २४२ वर्ष पूर्व राजा अशोकके समय में हुई । इस समामें एक सहल चौद्ध सम्मि- लित थे। सभाका प्रधान मुद्गाल्यका पुत्र तिष्य था। स्मरण रहे कि यह सभा केवल दक्षिणी बौद्धोंकी थी । उत्तरीय बौद्धोंने
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